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________________ ३२ मेरी जीवन गाथा प्रकार दो पुत्र हैं। आप लोगोंने वेदी प्रतिष्ठा कराई जिसमे उस प्रान्तके बहुतसे जैनी भाई आये। आपके द्वारा एक हाईस्कूल भी सासनीमे चल रहा है। बहुत ही सुखसे यहाँ रहा । यहाँ पर १ विलक्षण प्रथा देखनेमे आयी कि जिस समय श्री जिनेन्द्रदेवका रथ निकल रहा था उस समय यहाँके प्रत्येक जातिवालोंने श्री जिनेन्द्रदेवको भेंट की। कोई जाति उससे मुक्त न थी। सर्व ही जनताने श्री महावीर स्वामीकी जय बोली। यवन लोगोंने ४०) भेट किया तथा ब्राह्मण एवं वैश्योंने भगवान्की आरती उतारी। कहाँ तक कहे चर्मकारोंने २००) की भेंट की। खेद इस वातका है, हमने मान रक्खा है कि धर्मका अधिकार हमारा है। यह कुछ बुद्धिमें नहीं आता। धर्म वस्तु तो किसीकी नहीं, सर्व आत्मा धर्मके पात्र हैं, बाधक कारण जो हैं उन्हें दूर करना चाहिये। माघ वदी ४ संवत् २००५ का दिन था। आज वेगसे ज्वर आ गया। मनमे ऐसा लगने लगा कि अब शारीरिक शक्ति क्षीण होती नाती है । सम्भव है आयुका अवसान शीघ्र हो जावे अत कुछ आत्महित करना चाहिये। केवल स्वाध्याय आदिमे चित्तवृत्ति स्थिर करना चाहिये, प्रपञ्चोंमें पड़ व्यर्थ दिन व्यय करना उचित नहीं। संसारकी दशाका खेद करना लाभदायक नहीं। दूसरे दिन साधारण सभा थी, हमारा व्याख्यान था परन्तु हमसे समय पर यथार्थ व्याख्यान न वन सका। हमारी शारीरिक शक्ति बहुत मन्द हा गई हैं अब हम उतने शक्तिशाली नहीं कि १०:० जनतामे व्याख्यान दे सकें। अब तो केवल १० मनुष्योंमे व्याख्यान दे सकते हैं। शक्ति ह्रासको देखते हुए उचित तो यह है कि अब सर्व विकल्पोंका त्याग कर केवल आत्म-हित पर दृष्टिपात करें। गल्पवादके दिन गये, अब आत्मकथामें रसिक होना चाहिये। आज रात्रिको पुनः बाबा भागीरथजी का दर्शन हुआ । आपने कहा
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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