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बनारसकी ओर
४३३ है। यहाँसे प्रातः ४६ मील चलकर पुनः एक स्कूलमे ठहर गये। यहाँके मास्टर बहुत ही योग्य थे। आपने बहुत ही आदरके साथ स्थान दिया। स्थान शान्तिपूर्ण था। शरीरमे कुछ थकावट भी थी अतः इस दिन संध्याकलीन प्रयाण स्थगित कर रात्रिको यहीं विश्राम किया। स्थान निर्जन था, कोई प्रकारका कोलाहल न था फिर भी
अन्तरङ्गकी शान्ति न होनेसे अन्तरङ्ग लाभ नहीं हुआ। जहाँ तक विचारसे काम लेते हैं यही समझमे आता है कि अनादि कलुपताके प्रचुर प्रभावमें कुछ सुध-बुध नहीं रहती, केवल ऊपरी वेष रह जाते हैं।
यहाँसे प्रातः ३ मील ३ फाग चलकर हनुमना आ गये। यह नगर अच्छा है। यहाँ पर श्री कोमलचन्द्रजीकी दूकान है । रीवासे २ गृहस्थ आये। उन्हींने आहार दिया। पण्डित फूलचन्द्रजी भी आये। ३ वजे स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षामे जो बोधिदुर्लभानुप्रेक्षा है उस पर विचार हुआ। सर्व पर्यायोंमें मनुष्य पर्याय अति दुर्लभ है। इसमें उत्तरोत्तर संयम पर्यन्तकी दुर्लभता दिखाई । संयमरत्नको पाकर जो विषयलोलुपी संयमका धात, कर लेते हैं वे भूति (भस्म) के अर्थ रत्नको जला देते हैं। इस परिणतिको धिक् है । रात्रिको यहीं रहे। प्रातःकाल श्रीशान्तिनाथ भगवान्का पूजन समारोहके साथ हुआ। भोजन रीवांवालोंके यहाँ हुआ । मिर्जापुरसे श्री पोष्टमास्टर कन्हैयालालजी आये। परिग्रहका पिशाच सबके ऊपर अपना प्रभाव जमाये है। अच्छे अच्छे धनी मानी इसके प्रभावमे अपनी प्रतिष्ठाको खो देते हैं। सम्यग्ज्ञान होनेके बाद भी इसका रक्षित रहना कठिन है । अज्ञानीकी कथा छोड़ो। अज्ञानी परिग्रहको न छोड़े, आश्चर्य नहीं परन्तु जानकार ज्ञानी न छोड़े यह आश्चर्य है।
यहाँसे सायंकाल ३ मील चलकर भैसोड़के डॉकबङ्गलामे ठहर गये। प्रातःकाल ३३ मील चल लुहस्थिहरके पहाड़ पर आ
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