SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 439
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४१४ मेरी जीवन गाथा वेदनाओं का अभाव करना चाहते हैं उन्हें उचित है कि पर पदार्थों का अपनाना त्यागें । 'प्रशंसाकी इच्छासे कार्य आरम्भ करना आत्माको पति बनानेकी कला है ।' 'अपनी सुव भूलकर यह आत्मा दुःखका पात्र बना | गृहस्थों के जालमें आकर जैसे चुगके लोभसे चिड़ियां फंस जाती हैं वैसे ही त्यागी वर्गं मोह-जालमे फंस जाता है ।" 'आत्माराम अकेला आया और अकेला ही जायेगा । कोई भी इसका साथी नहीं । अन्यकी क्या कथा, शरीर भी सुख-दुःख भोगने साथी नहीं ।' 'शुद्ध हृदयकी भावना नियमसे फलीभूत होती है । निर्मा [ मायारहित ] ही कार्य सफल होता है ।" I पर का भय मत करो। पर को अपनाना छोड़ो। परको अपनाना ही राग-द्व ेपमे निमित्त हैं ।" 'भयसे व्यवहार करना आत्माकी वञ्चना है । मोक्षमार्गका सुगमोपाय अपनी अहम्बुद्धि त्यागो | मैं कौन हूँ ? इसे जानो । इसे जानना कुछ कठिन नहीं । जिसमे यह प्रश्न हो रहा है वही तो तुम हो । " 'आत्मज्ञान होना कठिन नहीं किन्तु परसे ममता भाव त्यागना अति कठिन है ।' 'सुख - शान्तिका लाभ परमेश्वरकी देन नहीं, उपेक्षाकी देन है ।" 'शान्त मनुष्य वह हो सकता है जो अपनी प्रशंसाको नहीं चाहता ।' 'परकी समालोचना न करो और न सुनो।'
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy