SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 4
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकाशकीय पूज्य वर्णी जी द्वारा स्वय लिखित मेरी जीवन गाथा प्रथम भाग को प्रकाशित हुए काफी समय हो गया है । इस वर्ष उसकी द्वितीय श्रावत्ति भी प्रकाशित हो गई है। इसे पूज्य वर्णी जी ने अपने जीवनवृत्तके साथ अनेक रोचक और हृदयग्राही घटनाओं, सामाजिक प्रवृत्तियो और धर्मोपदेशसे समृद्ध बनाया है। पूज्य वर्णी जीकी कलममे ऐसा कुछ आकर्षण है कि जो भी पाठक इसे पढ़ता है उसकी अात्मा उसे पढ़ते हुए तलमला उठती है । वह वीर स० २४७५ में प्रकाशित हुई थी इसलिए स्वभावतः उसमें उसके पूर्व तक का ही इहवृत्त सकलित हो सका है। उसे समाप्त करनेके बाद प्रत्येक पाठककी इच्छा होती थी कि इसके आगेकी जीवनी भी यदि इसी प्रकार संकलित होकर प्रकाशित हो जाय तो जनताका बडा उपकार हो । अनेक बार पूज्य वणी जीके समक्ष यह प्रस्ताव रखा भी गया किन्तु सफलता न मिली। सौभाग्यकी बात है कि पिछले वर्ष जयन्तीके समय जब हम लोगोंने पुनः यह प्रश्न उठाया और पच वणी जीसे प्रार्थना की तो उन्होंने कहा भैया ! उसमें क्या धरा है ? फिर भी यदि आप लोग नही मानते हो तो हमने जो प्रत्येक वर्प की डायरियाँ ग्रादि लिखी हैं उनमे अब तककी सब मुख्य घटनाएं लिपियुद्ध हैं, आप लोग चाहो तो उनके अाधारसे यह कार्य हो सकता है । मबको पूज्य वर्णी जी की यह मम्मति जानकर बड़ी प्रसन्नता हुई। तत्काल जो डायरियाँ या दूसरी सामत्री ईमरीमे थी वे वहॉते ली गई और जो श्री गणेशप्रसाद वणी जैन उन्धमालाके पागलयमें थी वे वहाँसे ली गई और सबको एकत्रित करके श्री विद्यार्थी नन्द्ररमार जीके हाथ सागर भी प. पन्नालाल जी नादियानाने पान पहुँचाची गई। मेरी जीवन गाथा प्रथम भागको ६० पनालाल जी मारिल्याचा
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy