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पर्व प्रवचनावली कर लाडू लेना अस्वीकृत कर दिया कि मै कभी लालाजीको पानी नही पिला सकता तब उनके लाडूका व्यवहार कैसे पूर्ण कर सकूँगा? शामके समय जब लालाजीको पता चला तो दूसरे दिन वे स्वयं लाडू लेकर नौकरके साथ गाड़ीपर सवार हो उसकी दूकानपर पहुंचे और बड़ी विनयसे दूकानपर बैठकर उसकी डालीमेंसे कुछ चने और गुड़ उठाकर खाने लगे। खानेके बाद बोले लाओ पानी पिलाओ। पानी पिया, तदनन्तर बोले कि भाई अव तो मैं तुम्हारा पानी पी चुका अव तो तुम्हे हमारा लाडू लेना अस्वीकृत नहीं करना चाहिये। दूकानदार अपने व्यवहार और लालाजीकी सौजन्यपूर्ण प्रवृत्तिसे दङ्ग रह गया। लाडू लिया और आँखोंसे आँसू गिराने लगा कि इनकी महत्ता तो देखो कि मुझ जैसे तुच्छ व्यक्तिको भी ये नहीं भुला सके। आजका बड़ा आदमी क्या कभी किसी गरीबका इस प्रकार ध्यान रख सकता है ?
ज्ञान, पूजा, कुल, जाति, बल, ऋद्धि, तप और शरीरकी सुन्दरता इन आठ बातोंको लेकर मनुष्य गर्व करता है पर जिनका वह गर्व करता है क्या वे इसकी हैं ? सदा इसके पास रहनेवाली हैं ? क्षायोपशमिक ज्ञान आज है, कल इन्द्रियोंमें विकार आ जानेसे नष्ट हो जाता है। जहाँ चक्रवर्तीकी भी पूजा स्थिर नहीं रह सकी वहाँ अन्य लोगोंकी पूजा स्थिर रह सकेगी यह सम्भव नहीं है। कुल और जातिका अहङ्कार क्या है ? सबकी खान निगोद राशि है। आज कोई कितना ही बड़ा क्यों न बना हो पर निश्चित है कि वह किसी न किसी समय निगोदसे ही निकला है। उसका मूल निवास निगोदमे ही था। वलका अहंकार क्या ? आज शरीर तगड़ा है पर जोरका मलेरिया आ जाय तथा चार छह लॅघनें हो जावें तो सूरत बदल जाय, उठते न बने। धन सम्पदाका अभिमान थोता अभिमान है, मनुष्यकी सम्पत्ति जाते देर नहीं लगती। इसी