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समय यापन
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'ज्ञानं सुखस्य कारणम्' ज्ञान सुखका कारण है परन्तु परिपक्व जानसे ही सुख होता है यह निश्चय रखना चाहिए। जिसका ज्ञान अपरिपक्व है वह 'न इधरका न उधरका'-कहींका नहीं रहता। उसे पद पदपर त्रास उठाना पडता है। अतः जिस विषयको पढ़ो, सनोयोगसे पढ़ो और खूब पढ़ो। अनेक विपयोंकी अपेक्षा एक ही विपयका परिपक्व ज्ञान हो जावे तो उत्तम है।
श्रावण कृष्णा १० सं० २००९ को समाचार मिला कि डालमियों नगरमे श्रावण कृष्णा ८ सोमवारकी रात्रिको १२ बजकर १५ मिनटपर श्री सूरिसागरजी महाराजका समाधिपूर्वक देहावसान होगया। समाचार सुनते ही हृदयपर एक आघात सा लगा। आप एक विशिष्ट आचार्य थे, फीरोजावादके साक्षात्कारके अनन्तर तो आपमे हमारी अत्यन्त भक्ति होगई थी। इसके पहले जब आपकी रूणावस्था के समाचार श्रवण किये थे तब मनमें आया था कि एक बार उनके चरणोंमें पहुंचकर उनकी वैयावृत्त्य करें परन्तु बाह्य त्याग के संकोचमें पड़ गये । हमारा मनोरथ मनका मनमें रह गया। श्री १०८ मुनि आनन्दसागरजीके नेत्रोंसे तो अश्रुधारा बहने लगी क्योंकि आपने उन्हींसे दीक्षा ली थी। मुनिमहाराज तथा हमने
आज उपवास रक्खा । कटरामे मन्दिरके सामने शोकसभा हुई जिसमे बहुत भारी जनता आई। विद्वानोंने समाजको उनका परिचय कराया तथा उनका गुणगानकर उनके प्रति श्रद्धाञ्जलि अर्पित की।
दिल्लीसे श्रीराजकृष्णजी, जैनेन्द्रकिशोरजी तथा लाला मुंशीलालजी आदि और कलकत्तासे छोटेलालजी आये। सब वर्णीभवनके हालमें ठहरे। रक्षाबन्धनका पर्वकी आज चर्या श्रीराजकृष्ण तथा जैनेन्द्रकिशोरके यहाँ हुई किन्तु भाग्यवश कटोरी भर भी दुग्धपान न कर पाया कि कटोरीमें मृत मक्षिका निकल गई । भोजनमे अन्तराय हो गया। इसके पूर्व चतुर्दशीका उपवास किया था। लोगोंको