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मेरी जीवन गाथा
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किन्तु अपने समयका हम दुरुपयोग करते हैं इसका खेद रहता है। यह हमारी मोह निमित्तक महती जड़ता है । यदि आज हम लोक प्रशंसाको त्याग देवें तो अनायास सुखी हो सकते हैं परन्तु लोकैपाके प्रभावसे वञ्चित हैं यही हमारे कल्याणमें बाधक है। यहाँ ३ दिन रहे ।
तदनन्तर घुवारासे ४ मील चल कर भौंहरे ग्राम आ गये ! यहाँ पर ८ घर जैनियोंके हैं व १ मन्दिर है । मन्दिर में अन्धकार था श्रुत' उसके सुधारके लिये ४००) का चन्दा हो गया । प्रवचन में ग्रामके ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य आदि सभी लोग आये व सुन कर प्रसन्न हुए। जैन धर्म तो प्राणीमात्रका कल्याण चाहनेवाला है । उसे सुनकर किसे हर्ष न होगा ? भोजनके उपरान्त यहाँ से चल कर गोरखपुर आ गये । गाँवके सव लोगोंने स्वागत किया । श्रीनाथरामजी ब्रह्मचारी तथा श्री क्षुल्लक क्षेमसागरजीका व्याख्यान हुआ । आपलोगोंने यह बताया कि धर्मका मूल दया है अतः सभी को उसका पालन करना चाहिये । यहाँ १ मन्दिर है । उसमे पार्श्वनाथ भगवान् की एक बहुत ही मनोज्ञ प्रतिमा है । शास्त्र प्रवचन हुआ । एक छोटी सी पाठशाला हैं जिसमें पं० रामलालजी दरगुवाँवाले छात्रछात्राओं को अध्ययन कराते हैं। बहुत सुशील मनुष्य है । परिश्रमी भी हैं । यहाँसे चलकर धनगुवाँ आये। ग्राम साधारण है पर लोग उत्साही हैं। नरेन्द्रकुमार बी० ए०, जो निर्भीक वक्ता व लेखक है, यहींके हैं। श्री लक्ष्मणप्रसादजी जो सागर विद्यालय में काम करते हैं वे भी यहींके हैं। शास्त्रप्रवचन हुआ जिसमें ग्रामके सब लोग सम्मिलित हुए । देहातके लोगोंमे सौमनस्य अच्छा रहता है। यहाँ से चलकर श्री द्रोणगिरि क्षेत्रपर पहुँच गये । बहुत ही रमणीय व उज्ज्वल क्षेत्र हैं । यहाँ पहुँचने पर न जाने क्यों अपने आप हृदयमें एक विशिष्ट प्रकारका आह्लाद उत्पन्न होने लगता है । ग्रामंके