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मुरारसे आगरा ग्रामके लोगोंका लम्बा व्याख्यान सुन हम हतप्रभ से रह गये कुछ भी उत्तर , देनेमे समर्थ नहीं हुए। यहांसे चल कर एक ग्राममे सायंकाल पहुँच गये और प्रातःकाल ३ मील चल एक दूसरे ग्राममे पहुँच गये। यहाँ पर एक ब्रह्मचारी जी रहते थे उन्होंने भोजनका प्रवन्ध किया। महती भक्तिके साथ संघको भोजन कराया। यहाँ पर आगरासे बहुतसे मनुष्य आ गये। सामायिक करनेके अनन्तर सर्व जन समुदायने आगराके लिये प्रस्थान कर दिया । दो मील जानेके वाद सहस्रों मनुष्योंका समुदाय गाजे बाजेके साथ छीपीटोलाके लिये चला। बाजा बजानेवाले वाजामे मधुर मधुर गाना सुना रहे थे जिसको श्रवण कर मार्गका परिश्रम विस्मृत सा हो गया। समुदायके साथ छीपीटोलाकी धर्मशाला मे पहुँच गये। ३ घण्टा व्याख्यानमे गया । व्याख्यानमे यही अलाप था कि हम लोगोंका महान् भाग्य है जो आपका शुभागमन हमारे यहाँ हुआ । हमने भी शिष्टाचारके नाते जो कुछ बना वक्तव्य दिया । वक्तव्य में मुख्य बात यह थी कि__ मनुष्यभव पाना अति दुर्लभ है इसका सदुपयोग यही है कि निजको जानकर परका त्याग कर इस संसार बन्धनसे छूटनेका उपाय करना चाहिये। इसका मूल कारण संयम भाव है । यही तात्पर्य है कि सब ओरसे अपनेको हटा कर अपनेमें लीन हो जाना। यही संसारके विनाशका मूल है, अतः सबसे मोह त्यागो हम तो कोई वस्तु नहीं महापुरुषोंने भी तो यही मागें दिखाया है। महापुरुप वही है जो मोह-राग-द्वेष को निर्मूलित करनेका प्रयत्न करता है। राग द्वेषके अभावमे मूल कारण मोहका अन्त है । उसका अन्त करनेवाला ही सर्वपूज्य हो जाता है । पूज्यता अपूज्यता स्वाभाविक पर्याय नहीं किन्तु निमित्त पाकर आविर्भूत होती है। जहाँ मोहादिरूप आत्मपरिणति होती है वहीं अपूज्यताका व्यवहार