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फिरोजाबाद में विविध समारोह
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पटांग क्रियाएँ बता कर भोली भाली जनता अपनी प्रतिष्ठा चनाये रखना चाहते हैं पर इसे धर्मका रूप कैसे कहा जा सकता है ? ज्ञानका अभ्यास जिसे है वह सदा अपने परिणामों को तोल कर ही व्रत धारण करता है । परिणामोंकी गतिको समझे बिना ज्ञानी मानव कभी प्रवृत्ति नहीं करता अतः मुनि हो चाहे श्रावक, सबको अभ्यास करना चाहिये । अभ्यासकी दृष्टिसे यदि दश बीस त्यागी एकत्र रह कर किसी विद्वानसे अध्ययन करना चाहते हैं तो गृहस्थ -लोग उसकी व्यवस्था कर दे सकते हैं। पर ऐसी भावनावाले हों तवन । व्रती विद्यालय स्थापित होना चाहिये ऐसी माँग देख श्री छदामीलालजी ने कहा कि यदि व्रती विद्यायल कहीं स्थापित हो तो हम १५०) मासिक दो वर्ष तक देते रहेगे। एक दो मिहाशयने और भी २०) २०) ३०) ३०) रुपया मासिक देते रहनेकी घोषणा की।
महाराजने यह भी कहा कि आजका व्रतीवर्ग चाहे मुनि हो चाहे श्रावक, स्वच्छन्द होकर विचरना चाहता है यह उचित नहीं है । मुनियों मे तो उस मुनिके लिये एकविहारी होनेकी आज्ञा है जो गुरुके सान्निध्यमे रहकर अपने आचार-विचारमे पूर्ण दक्ष हो तथा धर्मप्रचारकी भावनासे गुरु जिसे एकाकी विहार करनेकी आज्ञा दे दें। आज यह देखा जाता है कि जिस गुरुसे दीक्षा लेते हैं उसी गुरुकी आज्ञा पालनमें अपनेको असमर्थ देख नवदीक्षित मुनि स्वयं एकाकी विहार करने लगते हैं । गुरुके साथ अथवा अन्य साथियोंके साथ विहार करनेमें इस बातकी लज्जा या भयका अस्तित्व रहता था कि यदि हमारी प्रवृत्ति आगमके विरुद्ध होगी तो लोग हमे बुरा कहेंगे, गुरु प्रायश्चित देंगे पर एकविहारी होने पर किसका भय रहा ? जनता भोली है इसलिए कुछ कहती नहीं, यदि - कहती है तो उसे धर्मनिन्दक आदि कहकर चुप कर दिया जाता