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फिरोजाबादमें विविध समारोह
२३१ अर्थात् पूर्वापर विचार कर व्रत ग्रहण करना चाहिये और ग्रहण किये हुए व्रतको प्रयत्न पूर्वक पालन करना चाहिये। मनुष्य पर्यायका सबसे प्रमुख कार्य चारित्र धारण करना ही है इसलिये यह दुर्लभ पर्याय पा कर अवश्य ही चारित्र धारण करना चाहिये। उन्हींने कहा कि अन्तरड़की बात तो प्रत्यक्ष ज्ञानगम्य है पर बाह्यमे हिंसादि पञ्च पापोंसे निवृत्ति होना सम्यक्चारित्र है। पापोंकी प्रवृत्तिसे ही आज संसार दुःखसे पीड़ित हो रहा है । जहाँ देखो वहाँ हिंसा झूठ चोरी व्यभिचार और परिग्रहासक्तिके उदाहरण देखनेमे आ रहे हैं। आजका वातावरण ही पञ्च पापमय हो रहा है। इसलिये विवेकी मनुप्यको इस वातावरणसे हट कर अपनी प्रवृत्तिको निर्मल बनाना चाहिये। __ इसी व्रती सम्मेलनमें यह भी चर्चा आई कि आज त्यागी छोटी मोटी प्रतिज्ञा लेकर घर छोड़ देते हैं और अपने आपको एकदम पराश्रित कर देते हैं। इस क्रियासे त्यागियोंकी प्रतिष्ठा समाजमें कम होती जा रही है। इस विषयपर महाराजने कहा कि समन्तभद्र स्वामीने परिग्रहत्यागका जो क्रम रक्खा है उसी क्रमसे यदि परिग्रहका त्याग हो तो त्यागी पुरुषको कभी व्यग्रताका अनुभव न करना पड़े। सातवीं प्रतिमा तक न्याय पूर्ण व्यापार करनेकी आगममें छूट है फिर क्यों पहली दूसरी प्रतिमाधारी त्यागी व्यापारादि छोड़ भोजन वस्त्रादिके लिये परमुखापेक्षी बन जाते हैं। यद्यपि आशाधरजीने गृहविरत श्रावकका भी वणेन किा है पर वह अपने पास इतना परिग्रह रखता है जितनेमें उसका निर्वाह हो सकता है। यथार्थमे पर गृह भोजन १० वी ११ वीं व्रतिमासे शुरू होता है । उसके पहले जो व्रती पर गृह भोजन सापेक्ष होते हैं उन्हे संक्लेशका अनुभव करना पड़ता है। पासका पैसा छोड़ दिया और यातायातकी इच्छा घटी नहीं ऐसी स्थितिमे कितने