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इटावाकी ओर
१५५ वर्तमानमे मनुष्य इतने स्वार्थी हो गये हैं कि एक दूसरेकी दया नहीं करते। यहाँसे ४ मील चल कर नगलीकी धर्मशालामे ठहर गये और वहाँसे प्रातः ५ मील चल कर १ धर्मशालासे विश्राम किया। यहीं भोजन हुआ। यहाँपर सेठ शान्तिप्रसादजीकी लड़की मितने आई साथमे उसकी फूफी व भावज भी थी। मुझे लगा कि 'सर्व मनुष्य धर्मके पिपासु हैं परन्तु धर्मका मर्म बतानेवाले विरलताको प्राप्त हो गये। अपने अन्तरङ्गमें यद्वा तद्वा जो समझ रक्खा है वही लोगोंको सुना देते हैं। अभिप्राय स्त्रात्मप्रशंसाका है। लोग यह समझते है कि हमारे सदश अन्य नहीं । धर्मके ठेकेदार बनते हैं पर धर्म तो मोह-क्षोभसे रहित आत्माकी परिणतिका नाम है। उसपर दृष्टि नहीं।
दूसरे दिन प्रात ३ मील चल कर गवाना आ गये। यहीं पर भोजन किया पश्चात् ५ मील चलकर भरतरीकी धर्मशालासें ठहर गये। धर्मलाशासे ही शिवालय है यहाँसे अलीगढ़ ८ मील है। श्री पं० चाँदमल्लजी यहाँसे चले गये सेठ भौंरीलालजी सरियावाले खुरजासे साथ थे। यहाँ गयासे १ मनुष्य रामेश्वर जैनी तथा १ वर्तन मलनेवाला भी आ गया। इस धर्मशालामे १ साधु था वह भला आदमी था । यहाँसे ५ मील चलकर अलीगढ़से ३ मील इसी
ओर आगरावालो के मिलके सामने १ छोटी-सी धर्मशाला थी उसमें ठहर गये । १० बजे भोजनको गये परन्तु २ ग्रासके बाद ही अन्तराय हो गया । अन्तरायका होना लाभदायक है जो दोप है वे अपगत हो जाते हैं, क्षुधा परिषहके सहनेका अवसर आता है, अवमौदर्य तपका अवसर स्वयमेव हो जाता है । आत्मीय परिणामोंका परिचय सहज हो जाता है।' ___ यहाँसे ३ मील 'चलकर अलीगढ़ आ गये। यहाँ श्री सेठ वैजनाथजी सरावगी कलकत्तावाले मिल गये। आपका अभिप्राय