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मेरी जीवन गाथा तो यह जीव उपरितन गुणस्थानोंसे गिरकर द्वितीय सासादन गुणस्थानमें आ जाता है और सम्यग्दर्शनरूपी रत्नमय पर्वतकी शिखरसे नीचे गिर जाता है। इससे जान पड़ता है कि कषायका उदय अच्छा नहीं।
द्वितीय दिन मार्दव धर्मका व्याख्यान हुआ। मृदुका भाव मार्दव होता है और मृदु का अर्थ कोमल है। इसकी व्याख्या करना पण्डितोंका कार्य है, परन्तु इतना हर कोई जानता है कि मन, वचन
और कायके व्यापारमे कठोरता न आना चाहिये। कठोरताका व्यवहार बहुत ही अनुचित होता है । जिसका व्यवहार मृदुताको लिये हुए होता है उसको जगत् प्रिय मानता है, वह जगत्में प्रत्येक समय आदरका पात्र होता है। कोई भी उसके साथ असद्व्यवहार नहीं करता। __ तृतीय दिन आर्जवधर्मका विवेचन हुआ । आर्जव धर्म सरल परिणामोंसे होता है यह कह देना कौन कठिन है ? परन्तु जीवनमे उतर जाय यह कठिन है। मायारूप पिशाचीके वशीभूत हुआ यह प्राणी नाना स्वांग बनाता है। आज तो लोगोकी वात-बातमें मायाचारका व्यवहार भरा हुआ है । मायाचारका व्यवहार रहते परिणामोंमें निःशल्यता नहीं आती और निःशल्यताके अभाव में शान्ति कहाँसे प्राप्त हो सकती है ? अतः शान्तिके यदि इच्छुक हो तो माया रहित व्यवहार करो।
चतुर्थ दिन शौचधर्मका व्याख्यान था। शौचधर्म कहीं बाहरसे नहीं आता किन्तु आत्माकी निर्मल परिणति हो जानेसे आत्मामे ही प्रकट होता है । आत्माकी परिणति लोभ कपायके कारण कलुपित हो रही है, अतः कलुपितताका अपहरण करनेके लिये लोभका सबरण करना आवश्यक है। शौचधर्म आत्माकी स्वकीय परिणति है