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दिल्लीको ओर
करनेकी है। उसके अर्थ वाह्य आचरणको भी निर्मल बनानेकी आवश्यकता है। यदि बाह्य आचरण शुद्ध हो जाते तो अन्तरङ्ग आचरण का निर्मल होना कठिन नहीं। अगले दिन इसलामपुरसे ४ मील चल कर रामनगर आये। वीचमे १ नहर मिली। हवा ठण्डी थी। साथ ही हवाकी प्रचुरतासे वालूके कण बहुत उठते थे जिससे आँखोंमे कष्ट प्रतीत होता था । यहाँ वालोंने बहुत ही स्वागत किया। अनेकों स्थानों पर दरवाजे बने हुए थे। जगह जगह सजावट थी। लोगोंमें उत्साह ही उत्साह दृष्टिगोचर हो रहा था । धर्मशालामे ठहराया। वजे प्रवचन हुआ। वहुंतसे मनुष्य आये। प्रवचन रुचिकर हुआ, परन्तु विशेष वाचालता (कोलाहल ) से चित्त नहीं लगा। पश्चात् भोजन किया। मध्यान्हके वाद २ वजेसे सभा हुई जिसमें मनुष्योंकी भीड़ बहुत आई। क्षुल्लक द्वय तथा अन्य लोगोंके व्याख्यान हुए। अगले दिन प्रातः ७ वजे वाचनालय खुला । समारोह अच्छा था। पश्चात् ८ वजेसे ह बजे तक प्रवचन हुआ । वहुत मनुष्य एकत्र हुए। सबने प्रवचन सुना। जैनियोंकी अपेक्षा अन्य मनुष्योंने बड़े स्नेहसे धर्मके प्रति जिज्ञासा प्रकट की तथा उनके चित्तमें मार्गका विशेष आदर हुआ। अनन्तर भोजनके लिये गमन किया । वहुत ही भीड़ थी। भोजन करना कठिन हो गया। एकके बाद एक आता ही रहा।
वैशाख सुदी १०-११ संबन् २००६ को ६३ बजे चल कर ७ मील नानौता आ गये। श्री महेन्द्रने वहत ही आदरसे अपने घरमे स्थान दिया । स्नानान्तर मन्दिरमें गये। अपके घर पर आपकी माँ तथा स्त्रीने आहार दिया। २ वजे वाद उत्सव हुआ। कई सहस्र मनुप्य उत्सवमे आये। कीर्तन करनेवालोंने कीर्तन किया। प्रायः संसारमें मनुप्य जो काम करता है वह अपने उत्सबके लिये करता है । उन्नतिका मार्ग कपाय निवृत्ति है, कपायकी निवृत्ति