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________________ आपकी भक्ति भक्त को निर्भीक बनाती है। आपके भक्त पर सिंह भी आक्रमण नहीं करता। श्च्योतन्मदाविल-विलोल-कपोल-मूलमत्त-भ्रमद्-भ्रमर-नाद-विवृद्ध-कोपम्। ऐरावताभमिभमुद्धतमापतन्तं', दृष्टवा भयं भवति नो भवदाश्रितानाम्॥38॥ अन्वयार्थ (श्च्योतन्मदाविल-विलोल-कपोल-मूल-मत्त भ्रमद्-भ्रमर-नाद-विवृद्धकोपं)झरने वाले मद से मटमैले चंचल गालों के मूल-भाग पर मंडराते हुए मतवाले भ्रमरों की गुंजार से जिसका क्रोध तीव्र हो गया है, (ऐरावताभं) जो ऐरावत हाथी जैसा है, (उद्धत) उद्दण्ड है और (आपतन्तं) आगे बढ़ रहा है, ऐसे (इभ दृष्टवा) हाथी को देखकर (भवदाश्रितानां) आपके शरणागतों को (भयं नो भवति) डर नहीं लगता। भिन्नेभ-कुम्भ-गलदुज्ज्वल-शोणिताक्तमुक्ता-फल-प्रकर-भूषित-भूमि-भागः। बद्ध-क्रमः क्रम-गतं हरिणाधिपोऽपि, नाक्रामति क्रम-युगाचल-संश्रितं ते॥ 39॥ अन्वयार्थ (भिन्नेभ-कुम्भ-गलदुज्ज्वल-शोणिताक्त-मुक्ता-फल-प्रकर-भूषित-भूमि-भागः) जिसने फाड़े हुए गज-मस्तक से टपकने वाले रक्त-रंजित मोतियों के समूह द्वारा भूमि-खंड को व्याप्त कर दिया है तथा (बद्ध-क्रम:) जो पंजों को सटा चुका है, ऐसा (हरिणाधिपः अपि) सिंह भी (क्रम-गतं) चपेट में आये हुए (ते क्रमायुगाचल-संश्रितं) आपके चरण-युगलरूपी पर्वत का आश्रय लेनेवाले मनुष्य पर (न आक्रामति) आक्रमण नहीं करता। पद्यानुवाद मद झरने से मटमैले हैं हिलते-डुलते जिसके गाल, फिर मँडराते भौरों का स्वर सुनकर भड़का जो विकराल। ऐरावत-सम ऊँचा पूरा आगे को बढ़ता गजराज, नहीं डरा पाता उनको जो तव शरणागत हैं जिनराज! पद्यानुवाद लह से लथपथ गिरते उज्ज्वल गज-मुक्ता गज मस्तक फाड़, बिखरा दिये धरा पर जिसने अहो! लगाकर एक दहाड़। ऐसा सिंह न करता हमला होकर हमले को तैयार, उस चपेट में आये नर पर जिसे आपके पग आधार॥ अन्तर्ध्वनि हे भव्य-शरण | जो इन्द्र के वाहन ऐरावत-सम मोटा-तगड़ा है, जिसके परिपुष्ट हिलतेडुलते गाल गण्डस्थल से झरते मद-जल से मटमैले हैं और गन्ध से खिंच कर आसपास मँडराते हुए मतवाले भ्रमरों की गुंजार से जिसका क्रोध भड़क गया है, ऐसे मद-मत्त हाथी को अपने सामने आता देखकर भी आपके शरणागत लोग बिलकुल नहीं घबराते। मनरूपी मतवाला हाथी भी आपकी शरण लेने पर शांत हो जाता है। ' अन्तर्ध्वनि गजराज के मस्तक को फाड़कर रक्त-लिप्त कान्तिमान गज-मुक्ताओं को भूमि-खण्ड पर बिखराने वाला और छलांग मारने को तैयार खूखार सिंह भी अपनी चपेट में आये हुए आपके चरणों की ओट में सुरक्षित भक्त पर हमला नहीं करता। कालरूपी सिंह भी आपके चरणों का आश्रय लेनेवाले सल्लेखनाधारी पर आक्रमण नहीं करता। तभी तो उसकी मृत्यु उस पर हावी न होकर मृत्यु-महोत्सव बन जाती है। 1. ऐरावताभमिभमुत्कटमापतन्तं
SR No.009939
Book TitleMantung Bharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhyansagar
PublisherSunil Jain
Publication Year2005
Total Pages53
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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