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आप अष्ट-प्रातिहार्य-मंडित तीर्थंकर हैं। विशाल अशोक-वृक्ष के नीचे आप कैसे लगते हैं ?
आप सिंहासन पर अधर विराजमान हैं।
उच्चैरशोक-तरु-संश्रितमुन्मयूखमाभाति रूपममलं भवतो नितान्तम्।
स्पष्टोल्लसत्किरणमस्त-तमोवितानं, बिम्बं रवेरिव पयोधर-पार्श्ववर्ति ॥28॥
सिंहासने मणि-मयूख-शिखा-विचित्रे, विभ्राजते तव वपुः कनकावदातम्। बिम्बं वियद्विलसदंशु-लता-वितानं, तुङ्गोदयाद्रि-शिरसीव सहस्र-रश्मेः ।। 29॥
अन्वयार्थ (मणि-मयूख-शिखा-विचित्रे सिंहासन) मणियों की किरण-शिखाओं से जो रंग-बिरंगे हैं, ऐसे सिंहासन पर (तवकनकावदातं वपुः) आपका स्वर्ण-जैसा पीला शरीर (तुङ्गोदयाद्रि-शिरसि) ऊँचे उदय-पर्वत के शिखर पर (वियद्विलसदंशुलता-वितानं) आकाश में शोभायमान किरणरूप लताओं के विस्तार से युक्त (सहस्र-रश्मेः बिम्बं इव) सूर्य के बिम्ब की भाँति (विभ्राजते)सुशोभित होता
अन्वयार्थ (उच्चैरशोक-तरु-संश्रित) ऊँचे अशोक-तरु के तले विराजमान तथा (उन्मयूखं) ऊपर को उठती किरणों से युक्त (भवतः) आपका (अमलं रूपं) निर्विकार रूप (स्पष्टोलसत्किरणं) जिसकी किरणें स्पष्टत: शोभायमान हैं और (अस्त-तमोवितानं) जिसने अन्धकार के विस्तार को समाप्त कर दिया है, ऐसे (पयोधर-पार्श्ववर्ति) बादल के निकटवर्ती (रवेः बिम्ब इव) सूर्य के बिम्ब की भाँति (नितान्तं आभाति) अत्यन्त सुन्दर लगता है।
पद्यानुवाद मणि-किरणों से रंग-बिरंगे सिंहासन पर निःसंदेह, अपनी दिव्य छटा बिखराती तव कंचन-सम पीली देह। नभ में फैल रहा है जिसकी किरण-लताओं का विस्तार, ऐसा रवि ही मानो प्रातः उदयाचल पर हो अविकार।
पद्यानुवाद ऊँचे तरु अशोक के नीचे नाथ विराजे आभावान, रूप आपका सबको भाता निर्विकार शोभा की खान। ज्यों बादल के निकट सुहाता बिम्ब सूर्य का तेजोधाम, | प्रगट बिखरती किरणों वाला विस्तृत-तम-नाशक-अभिराम॥
अन्तर्ध्वनि हे पूज्य! अपने शरीर के द्वादश-गुणित ऊँचे अशोक-वृक्ष के नीचे विराजमान आप ऐसे मनोहर प्रतीत हो रहे हैं जैसे बादल के पास स्थित तिमिर-ध्वंसी प्रकाश-पुंज सूर्य । हे तीर्थंकर ! जिस वृक्ष के नीचे आप केवलज्ञानी हुए उसी का प्रतिरूप यह प्रातिहार्य है, जो दिव्य एवं छायादार है। जब आपका यह प्रातिहार्य वृक्ष भी 'अशोक' है तब क्या आपकी शरण लेनेवाला 'अशोक' अर्थात् शोकमुक्त न होगा?
अन्तर्ध्वनि मणियों की रंग-बिरंगी किरणों से शोभित सिंहासन पर समारूढ़ आपका स्वर्ण-सम पीत शरीर उदयाचल के ऊपर आकाश में किरणों को बिखराते हुए उदीयमान सूर्य के जैसा सुन्दर लगता है। आपका स्थान संसार में सर्वोपरि है। हे त्रिलोक-शिरोमणि । केवलज्ञान होने पर आप भूमि से 5000 धनुष ऊपर समासीन हुए और सिंहासन से भी 4 अंगुल ऊपर विराजे हैं।