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४. रचनायें
मनोमौन के साथ-साथ सकल वृत्तियें शान्त हो जाने के कारण यद्यपि आजकल आपकी लेखन-वृत्ति शान्त हो गई है, तदपि लेखों तथा पुस्तकों के रूप में आपने आजतक जो तथा जितना कुछ भी दिया है उसके लिये समाज सदा आपकी ऋणी रहेगी। सभी कृतियें गहनतम अनुभूतियों से भरी पड़ी हैं । किसी में भी कोई बात कहीं से उधार ली गई नहीं है, सभी आपके स्वतन्त्र हृदय-प्रवाह की द्योतक हैं, तदपि किसी में भी कहीं आगम-विरोध के लक्षण दिखाई नहीं देते । सभी बिना किसी संकल्प के सहज रूप में उदित हुई हैं और सबका अपना-अपना पृथक इतिहास है जिनमें से कुछ का उल्लेख पहले किया जा चुका है। सभी कृतियें इन स्थानों से प्राप्त हो सकती हैं
(१) श्री जिनेन्द्र वर्णी ग्रन्थमाला, ५८/४ जैन स्ट्रीट पानीपत । (२) शान्ति निकेतन, पो० ईसरी बाजार जि० गिरिडीह, बिहार । (३) विश्व जैन मिशन, (केन्द्र) जैन स्ट्रीट, पानीपत | (४) मूलचन्द किशनदास कापड़िया, गान्धी चौक,
सूरत
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शान्तिपथ-प्रदर्शन (१६६०) :
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सन् १६५६ में दिये गये मुजफ्फरनगर के प्राध्यात्मिक प्रवचनों का संग्रह है, जिसमें जैन दर्शन तथा जैन धर्म का सांगोपांग विवेचन आ गया है। प्रथम तथा द्वितीय संस्करण 'विश्व जैन मिशन, पानीपत केन्द्र' से प्रकाशित हुए थे अब सन् १९७६ में तृतीय संस्करण 'शान्ति निकेतन श्राश्रम, ईसरी से प्रकाशित हुआ है। चतुर्थ संस्करण श्री जिनेन्द्र वर्णी ग्रन्थमाला पानीपत से १६८२ में प्रकाशित हुआ है । मूल्य २५) कपड़ाबाउन्ड २८) २५ प्रतिशत छूट दी जायगी। विद्वद् समाज ने मुक्त कण्ठ से इसकी प्रशंसा की है । यथा