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कनकी )
B ३. अभिनन्दन पुिरि (४) किन कह की आध्यात्मिक सन्त, प्रबुद्धचेता विद्वद्वर, (काकागार किम १०५ क्षुल्लक श्री जिनेन्द्र वर्णीजी महाराज के कर-कमलों में yि एक शिकार छ समपित गामिनी पर
卐 अभिनन्दन-पत्र शिशि अिध्यात्म रसिकारी की जानकारी (३) ( । भगवान् सुपार्श्व तथा पार्श्वनाथ की जन्म भूमि इस वाराणसी नगरी में हम आपका अभिनन्दन करते हुए हार्दिक प्रमोद का अनुभव करते हैं। स्वास्थ्य की अनुकूलता न होते हुए भी आपने हमारे अनुरोध को स्वीकार कर वाराणसी में चातुर्मास करने की कृपा की और हमें अपने आध्यत्मिक उपदेशों का पान कराया, इसके लिए हम आपके अत्यन्त उपकृत हैं। आपके सरस, सरल और मनो-मुग्धकारी उपदेशामृत का पान करने के लिए यहाँ जैन अजैन सभी जिस उत्साह के साय आते रहे, उससे आपकी अध्यात्म-रसिकता का स्पष्ट परिचय मिलता है । प्रबुद्धचेता!
प्राचीन आचार्यों के दिव्य ज्ञान को आपने प्रबुद्ध दृष्टि से ग्रहण ही नहीं किया, साधना द्वारा अपने जीवन में उतारा है । सभी प्रकार के पूर्वाग्रहों और दुराग्रहों से दूर आपकी दृष्टि और हृदय अनेकान्त के सिद्धान्त की तरह ही अत्यन्त विशाल हैं।
विद्रदर!
आपके उपदेश ही आपकी विद्वता के सजीव प्रमाण है । आप द्वारा रचित 'शान्तिपथ प्रदर्शन' तथा 'नय-दर्पण' का अध्येता आपके वैदुष्यसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता । लगभग चार हजार पृष्ठों में लिखित 'जैनेन्द्र सिद्धान्त