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मका
बढ़ती हुई मांग ने जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश के प्रथम संस्करण को समाप्त कर द्वितीय संस्करण प्रकाशित करने के लिये बाध्य कर दिया। प्रथम संस्करण में जो कमी रह गई थी उसको दूर करने के लिये आपसे प्रार्थना की गई। अस्वस्थ रहते हुये भी आपने सहज भाव से उसे स्वीकार कर लिया। चारों खण्डों के शोधन के साथ-साथ पांचवें खण्ड जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश शब्दानुक्रमणिका को लिखकर कोश सम्पूर्ण करने में लगभग एक वर्ष का समय लग गया संशोधित प्रथम खण्ड शीघ्र ही प्रकाशित होने जा रहा है।
लगभग तीन वर्ष से विभिन्न स्थानों से समाज के श्रद्धालुगण आपकी अमृत वाणी का पान करने के लिये इतने उत्सुक रहते थे कि अपने स्थान पर ले जाने के बाद छोड़ने का नाम नहीं लेते थे। जो कि किसिमी
न केवल जैन समाज अपितु अजैन समाज भी आपसे अति प्रभावित थी। भोपाल जैन समाज आपके अमृतमयी वचनों से अत्यधिक प्रभावित थी। बनारस तो आपका विशिष्ट साधना स्थल बन गया। भाई जयकृष्णजी की माताजी आपकी धर्म माता के नाम से सुविख्यात हैं। IT वाराणसी में रहते हुये ही अप्रेल सन् १९८१ में महावीरजयन्ती के शुभ अवसर पर वैशाली प्राकृत शोध संस्थान की ओर से आपका अभिनन्दन किया गया। जिसमें एक ताम्र-पत्र, ढाई हजार रुपये, साहित्य व चादर आदि भेंट स्वरुप अर्पित किये गये। नकद रुपया लेने से आपने अस्वीकार कर दिया जो बाद में समण सुत्त के प्रकाशन के लिये सर्व सेवासंघ को भेज दिया गया।
भी आपका स्वास्थ्य ठीक न रहने परभी आप अपने लक्ष्य पर जिस दृढ़ता से बढ़ रहे हैं उसका शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता। सन् १९८० में