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________________ ज्ञाताधर्मकथा ५५ तए णं से सेलए राया पंच मंतिसयाई पाउब्भवमाणाइं पासइ, पासित्ता हहतुढे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी- खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! मंडुयस्स कुमारस्स महत्थं जाव रायाभिसेयं उवट्ठवेह । एवं जाव अभिसिंचइ जाव राया जाए जाव विहरइ । तए णं से सेलए मंडुयं रायं आपुच्छड़ । तए णं से मंडुए राया कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी- खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! सेलगपुरं णयरं आसिय जाव गंधवट्टिभयं करेह य कारवेह य, एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह । तए णं से मंडुए दोच्चं पि कोडुबयपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी- खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! सेलगस्स रणो महत्थं जाव णिक्खमणाभिसेयं करेह। एवं जहेव मेहस्स तहेव णवरं पउमावई देवी अग्गकेसे पडिच्छइ । सेसं तं चेव जाव पडिग्गहं गहाय सीयं दुरुहंति, जाव पव्वइए जाव सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाइ अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहूहिं चउत्थ जाव विहरइ । तए णं से सुए सेलयस्स अणगारस्स ताई पंथगपामोक्खाइं पंच अणगारसयाइं सीसत्ताए वियरइ । तए णं से सुए अण्णया कयाइं सेलगपुराओ णगराओ सुभूमिभागाओ उज्जाणाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ । तए णं से सुए अणगारे अण्णया कयाइं तेणं अणगारसहस्सेणं सद्धिं संपरिवुडे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगाम दुइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव पुंडरीए पव्वए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पुंडरीयं पव्वयं सणियं-सणियं दुरुहइ, दुरुहित्ता जाव भत्तपाणपडियाइक्खिए पाओवगमणमणुवण्णे । तए णं से सुए अणगारे बहूणि वासणि सामण्ण-परियायं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता, सहि भत्ताइं अणसणाए छेदित्ता जाव केवलवरणाणदंसणं समुप्पाडेत्ता तओ पच्छा सिद्धे जाव सव्वदुक्खप्पहीणे । तए णं तस्स सेलगस्स रायरिसिस्स तेहिं अंतेहिं य पंतेहिं य तुच्छेहि य लूहेहिं य अरसेहिं य विरसेहिं य सीएहिं य उण्हेहिं य कालाइक्कंतेहिं य पमाणाइक्कंतेहिं य णिच्चं पाणभोयणेहिं य पयइ-सुकुमालस्स सुहोचियस्स सरीरगंसि वेयणा पाउब्भूया- उज्जला जाव दुरहियासा, कंडुय-दाह-पित्तज्जर-परिगयसरीरे यावि विहरइ । तए णं से सेलए तेणं रोगायंकेणं सुक्के भुक्खे जाए यावि होत्था |
SR No.009906
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Mool Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorDevardhigani Kshamashaman
PublisherGlobal Jain Agam Mission
Publication Year2012
Total Pages220
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size5 MB
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