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________________ २७ भगवई सुत्त जइ अट्ठफासे- देसे कक्खडे देसे मउए देसे गरुए देसे लहुए देसे सीए देसे उसिणे देसे णिद्धे देसे लुक्खे, एवं चउभंगो । देसे कक्खडे देसे मठए देसे गरुए देसे लहुए देसे सीए देसा उसिणा देसे णिद्धे देसे लुक्खे, एवं चउभंगो । देसे कक्खडे देसे मउए देसे गरुए देसे लहुए देसा सीया देसे उसिणे देसे णिद्धे देसे लक्खे, एवं चउभंगो | देसे कक्खडे देसे मउए देसे गरुए देसे लहुए देसा सीया देसा उसिणा देसे णिद्धे देसे लुक्खे, एवं चउभंगो। एए चत्तारि चउक्का सोलस भंगा । देसे कक्खडे देसे मठए देसे गरुए देसा लया देसे सीए देसे उसिणे देसे णिद्धे देसे लुक्खे, एवं एए गरुएणं एगत्तएणं लहुएणं पुहत्तएणं सोलस भंगा कायव्वा । देसे कक्खडे देसे मउए देसा गरुया देसे लहुए देसे सीए देसे उसिणे देसे णिद्धे देसे लक्खे, एए वि सोलस भंगा कायव्वा | देसे कक्खडे देसे मठए देसा गरुया देसा लहया देसे सीए देसे उसिणे देसे णिद्धे देसे लुक्खे, एए वि सोलस भंगा कायव्वा। सव्वे वि ते चउसटुिं भंगा कक्खड-मउएहिं एगत्तएहिं । ताहे कक्खडेणं एगत्तएणं मउएणं पुहत्तेणं एते चउसद्धिं भंगा कायव्वा । ताहे कक्खडेणं पुहत्तएणं मउएणं एगत्तएणं चउसद्धिं भंगा कायव्वा । ताहे एएहिं चेव दोहि वि पुहत्तेहिं चउसद्धिं भंगा कायव्वा जाव देसा कक्खडा देसा मउया देसा गरुया देसा लहया देसा सीया देसा उसिणा देसा णिद्धा देसा लक्खा एसो अपच्छिमो भंगो। सव्वे ते अट्ठफासे दो छप्पण्णा भंगसया भवंति। एवं एए बायरपरिणए अणंतपएसिए खंधे सव्वेसु संजोएसु बारस छण्णउया भंगसया भवंति । कइविहे णं भंते ! परमाणू पण्णत्ते ? गोयमा ! चउव्विहे परमाणू पण्णत्ते, तं जहादव्वपरमाणू खेत्तपरमाणू कालपरमाणू भावपरमाणू । दव्वपरमाणू णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा- अच्छेज्जे, अभेज्जे, अडज्झे, अगेज्झे । खेत्तपरमाणू णं भंते ! कविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा- अणद्धे, अमज्झे, अपएसे, अविभाइमे । कालपरमाणू ण भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा- अवण्णे, अगंधे, अरसे, अफासे | भावपरमाणू णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा- वण्णमंते, गंधमंते, रसमंते, फासमंते || सेवं भंते ! सेवं भंते ! || || पंचमो उद्देसो समत्तो | वीसइमं सतं छट्ठो उद्देसो १ पुढविक्काइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए सक्करप्पभाए य पुढविए अंतरा समोहए समोहणित्ता जे भविए सोहम्मे कप्पे पुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते! किं पुट्विं उववज्जित्ता पच्छा आहारेज्जा, पुव्विं आहारित्ता पच्छा उववज्जेज्जा ? 483
SR No.009905
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Mool Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorDevardhigani Kshamashaman
PublisherGlobal Jain Agam Mission
Publication Year2012
Total Pages653
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size8 MB
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