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________________ R 13 ४ 19 ६ भगवई सुत्त इमा णं भंते ! रयणप्पभापुढवी किं चरिमा अचरिमा ? गोयमा ! चरिमपदं णिरवसेसं भाणियव्वं । जाव वेमाणिया णं भंते ! फासचरिमेणं किं चरिमा, अचरिमा ? गोयमा ! चरिमा वि अचरिमा वि ॥ सेवं भंते! सेवं भंते ॥ ॥ तइओ उद्देसो समत्तो ॥ चउत्थो उद्देशो रायगिहे जाव एवं वयासी कइ णं भंते! किरियाओ पण्णत्ताओ ? गोयमा! पंच किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा- काइया, अहिगरणिया पाओसिया, पारियावणिया, पाणाइवायकिरिया । एवं किरियापदं णिरवसेसं भाणियव्वं जाव सव्व थोवाओ मिच्छादंसणवत्तियाओ किरियाओ, अप्पच्चक्खाणकिरियाओ विसेसाहियाओ, परिग्गहियाओ किरियाओ विसेसाहियाओ, आरंभियाओ किरियाओ विसेसाहियाओ, मायावत्तियाओ किरियाओ विसेसाहियाओ || सेवं भंते ! सेवं भंते ॥ ॥ चउत्थो उद्देसो समत्तो ॥ पंचमो उद्देशो रायगिहे जाव एवं वयासी- आजीविया णं भंते ! थेरे भगवंते एवं वयासी- समणोवासगस्स णं भंते ! सामाइयकडस्स समणोवस्सए अच्छमाणस्स केइ भंडं अवहरेज्जा, से णं भंते ! तं भंड अणुगवेसमाणे किं सयं भंडं अणुगवेसइ, परायगं भंडं अणुगवेसइ ? गोयमा ! सयं भंडं अणुगवेसइ, णो परायगं भंडं अणुगवे । तस्स णं भंते ! तेहिं सीलव्वय-गुण- वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं से भंडे अभंडे भवइ ? गोयमा ! हंता भवइ । से केणं खाइ णं अट्ठेणं भंते ! एवं वुच्चइ सयं भंडं अणुगवेसइ णो परायगं भंडं अणुगवेसइ ? गोयमा ! तस्स णं एवं भवइ- णो मे हिरण्णे, णो मे सुवण्णे, णो मे कंसे, णो में दूसे, णो मे विपुलधण-कणग-रयण- मणि- मोत्तिय-संख- सिल-प्पवाल- रत्तरयणमाईए संतसारसावएज्जे, ममत्तभावे पुण से अपरिण्णाए भवइ, से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ सयं भंड अणुगवेसइ, णो परायगं भंडं अणुगवेसइ । समणोवासगस्स णं भंते ! सामाइयकडस्स समणोवस्सए अच्छमाणस्स केइ जायं चरेज्जा, से णं भंते! किं जायं चरड़, अजायं चरइ ? गोयमा ! जायं चरइ, णो अजायं चरड़ | तस्स णं भंते ! तेहिं सीलव्वय-गुण- वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं सा जाया अजाया भवइ ? गोयमा ! हंता भवइ । से केणं खाइणं अÌणं भंते ! एवं वुच्चइ जायं चरइ णो अजायं चरइ ? 198
SR No.009905
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Mool Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorDevardhigani Kshamashaman
PublisherGlobal Jain Agam Mission
Publication Year2012
Total Pages653
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size8 MB
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