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चाणक्यसूत्राणि
उत्साहसम्पन्नमदीर्घसूत्रं क्रियाविधिज्ञ व्यसनध्वसक्तम् । शूरं कृतक्षं दृढसौहृदं च लक्ष्मीः स्वयं मार्गति वासहेतोः ॥ ( विष्णुशर्मा ) लक्ष्मी निवासके लिये उत्साही, अदीर्घसूत्री, क्रियाकुशल, व्यसनोंसे अलग रहनेवाले, शूर, कृतज्ञ, दृढमित्र मनुष्यको ढूंढती फिरा करती है । ( शत्रुदमन दण्डनीतिपर निर्भर )
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अमित्रो दण्डनीत्यामायत्तः ॥ ७८ ॥
क्योंकि तुम्हारे शत्रुकी हानिप्रदता, प्रबलता या निर्बलता तुम्हारी दण्डनीतिकी ढिलाई या सतर्कतापर निर्भर करती है इसलिये अपनी दण्डव्यवस्थाको ठीक रखो ।
विवरण -- यदि तुम्हारी दण्डनीति ढीली होगी, अपराध करनेवाले शत्रुओं के अपराधोंकी उपेक्षा कर रहे शत्रु प्रबल होजांयगे और उन्हें तुम्हारे विरुद्ध खुलकर मिल जायेगा । इस अवस्था में तुम अपने ही राष्ट्रमें अपने शत्रु बढा रहे होंगे । यदि तुम दण्डनीति अर्थात् शष्टदमनकारी उचित उपायों को नहीं जानोगे और पूर्ण सतर्क होकर उन्हें निरन्तर काममें नहीं लाओगे, तो तुम्हारे शत्रुओंका बल पकडजाना अनिवार्य होजायेगा । जब तुम्हारा सतर्क जागरूक दण्ड राष्ट्रसेवाकी भावनासे प्रेरित होकर दण्डनीय लोगोंके पास अनिवार्य रूप से पहुंचता और उनके पापी सिरपर चढकर बैठा रहेगा तब ही तुम निर्वैर निष्कण्टक राज्य भोग सकोगे । राज्यकी रश्मि पकड़नेवाले लोगों को दण्डनीतिका ज्ञान तथा उसे प्रयोगमें लाने के ढंगों का पूरा परिचय अनिवार्य रूप से होना चाहिये। दण्डका उचित प्रयोग न जाननेवाले लोग हाथ पैर जोडने मात्र से उस प्रश्नकी राष्ट्रीय महत्ताको भूलकर उसे अपना व्यक्तिगत प्रश्न माननेकी भूल करके शत्रुओंको क्षमा कर बैठते हैं और अन्तमें उन्हींसे मारे जाते हैं । इतिहास में इसकी बहुतसी साक्षी विद्यमान है ।
यदि तुम राष्ट्रीय होगे, तो तुम्हारे खेलने का अवसर
दुर्भाग्य से भारत बहुत दिनोंसे अपनी राजशक्तिमें दण्डनीतिका प्रयोग करना छोडबैठा है । वह अपनी दण्डनीतिकी ढिलाईरूपी भूलसे विनाश