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तसे हानि
कुप्रभाव सेनापर भी पडेगा और उसे भी असंयत कर्तव्यहीन उत्तरदायित्वहीन निकम्मा बनाडालंगा । जैसे इन्द्रियासक्तका मन, काम, क्रोधादि रिपुओंके आक्रमणसे पतित होजाता है. इसी प्रकार उसके राज्याधिकारपर माक्रमण करनेवाले शत्रुके माक्रमणके अवसरपर उसकी सेनाका निकम्मापन उसके पतनका कारण बने विना नहीं रहता।
(तसे हानि ) नास्ति कार्य द्यूतप्रवृत्तस्य ।। ७१॥ द्यूतासक्त लोग कर्तव्यहीन होते हैं। विवरण- धूतासक्त लोग कर्तव्यका माह्वान आनेपर धैर्यच्युत हो जाते हैं। ऐसी कर्तव्यद्वेषिणी द्यूतासक्ति राजाका राष्ट्रवाती अपराध है ! पाठान्तर-- नास्ति कार्य द्रुतप्रवृत्तस्य ।
अविचार और भधैयसे शीघ्रतामें माकर काम प्रारंभ कर देनेवालेके काम सिद्ध नहीं होपाते ।
सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम् । वणुत हि विमश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमव संपदः ॥
भावि मनुष्य सहसा कोई भी काम न करे । अविवेक परम भापत्तियों का घर बन जाता है । संपत्तियोंको भी गुणोंका लोभ होता है। गुणोंका लोभ रखनेवाली संपत्तियां विचारकर काम करनेवालोंको अपने आप माकर वरती हैं।
सुचिन्त्य चोक्तं सुविचार्य यत्कृतम् ।
सुदीर्घकालेपि न याति विक्रियाम् ॥ विष्णुशर्मा सुचिन्तासे बोले वाक्य, तथा सुविचारसे किये काम लम्बे काल तक भी नहीं बिगडते । मनुष्य परिणामपर दृष्टि डाले विना तथा पूर्वापर पर्यालोचन किये विना किसी काममें हाथ न डाले। उपस्थित कर्मपर सूक्ष्म बुद्धिसे