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शत्रुराष्ट्र
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रहकर तथा अपने कृत्योंपर कोई सामाजिक नियन्त्रण न रखकर स्वेच्छाचारितासे राज करेंगे तो प्रवल अनिष्ट उठ खडे होने सुनिश्चित हैं। राजाको नीतिप्रोक्त नियमों के अनुसार ही मात्मरक्षा तथा प्रजापालन करना चाहिये। मनुके शब्दोंमें “ बहवोऽविनया नष्टा राजानः "वेन भादि बहुत राजा अविनय या दुनीतिसे विनाश पाचुके हैं।
(शत्रुराष्ट्र)
अनन्तरप्रकृतिः शत्रुः ॥४९॥ स्वदेशसे अव्यवहितदेशके राजा स्वभावसे शत्रु होते हैं। विवरण- जिनसे हरघडीका सीमासंघर्ष मादि कलह होने की संभा. वना बनी रहती है वे परस्पर शत्रु बनजाते है। राज्याधिकारी लोग निकटवर्ती राज्योंसे सदा सतर्क रहें और उनकी स्वविरोधी गतिविधि देखते रहें।
अहिताचरण करनेवालोंकी परस्पर शत्रुता हो जाती है। सुखदुःखमें एकसा रहना मानवसमाजको संगठित करनेवाला स्वाभाविक बन्धन है । इस मधुर बन्धनमें आबद्ध न रहकर दूसरेका सुख छीनने तथा दुःख पहुंचाने की स्वार्थी प्रवृत्ति रखने वाले लोग पारस्परिक शत्रु बन जाते हैं । समाजबन्ध. नको अस्वीकार करने और उसे मिटा डालनेवाला होना ही शत्रुकी परिभाषा है । समाजका शत्रु स्वभावसे व्यक्तिका भी शत्रु होता है । यदि पढौसके राजा एक दूसरेके हितैषी हों तो वे परस्पर सहायक बनकर शक्तिमान् होसकते हैं।
इस भादर्शके अनुसार पर्वतों तथा समुद्रोंसे बनी हुई चार प्राकृतिक सीमावाले भारतराष्ट्रकी सीमाके प्रत्येक स्वतन्त्र राजाका अपने पडौसीसे शत्रुता न करके उसका मित्र बनकर सम्मिलित भारतका एक विशाल शक्तिशाली साम्राज्य बनजाना ही “भारतको राष्ट्रीयताका आदर्श" है । भारतके वर्तमान राज्योंका पारस्परिक शत्रु बनजाना भारतकी राष्ट्रीयताका घातक है । जो राजा अपने पडौसी राज्यकी सुख समृद्धि अपहरण करनेकी भावना