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________________ मण्डल ४५ राज्याधिकारियों की स्वदेश संबन्धी कर्तव्योंकी अवहेलना ही उसका कारण होती है । उसीसे राष्ट्र में अव्यवस्था फैलती है। पाठान्तर- मन्त्रं स्वविषयकृत्येष्वायत्तम् । मन्त्रवाला पाठ अपपाठ है। ( आवाप आवाणे मण्डलनिविष्टः॥४६॥ आवाप अर्थात् परराष्टसंबन्धी कर्तव्य मण्डल अर्थात् पडौसी राष्ट्रसे संवन्ध रखता है। विवरण- शत्रुचिन्तारूपी भावाप अर्थात् शत्रुओं के कार्यों या उनकी गतिविधियोंकी देखभालका संबन्ध मण्डल अर्थात समीपवर्ती राष्टों के साथ और उन्हींपर निर्भर होता है। यदि आसपासकी राजशक्तियां शत्रुकी सहायता करती होती है, और उन्हें शत्रुकी सहायता करनेसे साम दाम दण्ड भेद आदि उपार्योसे रोका नहीं जाता, तो शत्रु आलवालमे जलसिंचनसे बढनेवाले फली वृक्ष के समान मण्डलसे बल पाता रहकर बढता चलाजाता है। इसलिये राजालोग अपने मण्डलको शत्रुओं के प्रभाव या वशमें न आने देने तथा उन्हें अपने अधीन या सहायक बनाये रखने की गम्भीर चिन्ता रखें। मण्डलको अपनी उपेक्षासे अपने प्रभावसे बाहर न होने दें। कामन्दकीय नीति, बाईस्पत्य सूत्र तथा कौटलीय अर्थशास्त्र में यह विषय विस्तार से वर्णित है। पाठान्तर-आवापो मण्डले सन्निविष्टः । ( मण्डल ) सन्धिविग्रहयोनिर्मण्डलः ॥ ४७॥ राज्यसंपृक्त वे पडोसी राज्य मण्डल कहाते हैं जिनके साथ सन्धि और विग्रह होते हैं।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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