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वर्तमान भारत
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शस्त्रबलके माधारसे मनुष्यसमाजको संत्रस्त करके प्रभुतालोभी लुटेरा बनकर यूनानके राजसिंहासन पर आरूढ हुआ था । वह अपनी बीस वर्षके अवस्थासे लेकर संसारभरकी मानवता पर लगातार असंख्यों भाक्रमण करके भूमाताको रक्तसे रंगकर मानव हृदयको मर्माहत बनाकर बारह वर्ष तक अपनी हिंसक जन्तुओंकी-सी हिंस्र क्रियामोसे संसारके सामने पाश्चात्य साम्राज्यवादका दुष्ट दृष्टान्त उपस्थित करके केवल बत्तीस वर्षको अवस्थामें हाथ मलमलकर पछताता हझा संसारसे चल बसा था। इसके सर्वथा विपरीत भारतीय साम्राज्य के प्रतिष्ठापक चन्द्रगुप्तने सिकन्दरके भाक्रमणों से आहत न केवल भारतवासियों को अपितु भारतके पडौसी राष्ट्रोतकको शान्ति और सम्मानके साथ जीवन बितानेकी सविधा देनेकी पक्की विश्वस्त सान्त्वना देकर केवल चौबीस वर्षको अवधिमें विद्रोहद्दीन, स्वगुणमुग्ध, सुसंगठित साम्राज्य बनाकर मनुष्यताका संरक्षक बनकर संसारभरको राष्ट्रनिर्माणको कलाका व्यावहारिक पाठ सिखाया था।
माज चन्द्रगुप्त तथा उनके निर्देशक मार्य चाणक्य को बीते लगभग सवादो सहस्र वर्ष बीत चुके । आज हम संसारमें क्या देख रहे हैं ? पाश्चात्य जगतने आजतक सिकन्दरका मादर्श नहीं छोडा । पाश्चात्य जगत् आजकल भी सिकन्दरके आदर्शको अपनाकर परराज्यलोलुपताकी पाशविक लीला करता ही चला जा रहा है और लोकसंहारक अस्त्रशनोंका आविष्कार कर करके संहारकी मूर्ति बना बैठा है। दुःखके साथ स्वीकार करना पड़ता है कि भारतने भी चाणक्यके आर्य भादर्शको पददलित कर डाला है। चाणक्य चन्द्रगुप्तकी ब्राह्मक्षात्र जोडीने भारतमें जिस शक्तिमान भारमविश्वासी साम्रा. ज्यका निर्माण किया था माज उसके स्थानपर निर्बल पारस्परिक लूटखसोट-हिंसा-द्वेषसे परिपूर्ण राष्ट्रियताहीन वैदेशिक शास्त्रवल की सहायताके प्रतीक्षक बना हुमा भारत है । भाजके भारतको राष्ट्रिय भ्रान्तिके दुष्परिजामको प्रत्यक्ष देखकर कौन विचारशील भारत सन्तान अपने को स्वतंत्र माननेका सुपना देख सकता है ?