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चाणक्यसूत्राणि
थे। इसके पश्चात् दो घण्टे खेल मादिसे चित्त विनोद किया करते थे। तीसरे पहर सेनाकी देखरेख करके सायंकालको राजामों तथा राजदूतोंसे मिला करते थे। वे राजकार्य में भ्रान्ति या टाल कभी नहीं करते थे। उन्होंने साम्राज्यकी शक्तिवृद्धि तथा जनसाधारणकी सुख समृद्धि के लिये बहुतसी विशाल योजनाओंको कार्यरूपमें परिणत किया था। भारतकी चारों दिशाओंमें छायावाले वृक्षोंसे भाच्छादित विशाल राजमार्ग बनवाये थे जिनपर थोडी थोडी दूरपर कूप तथा पान्धशालाये बनवाई थी। राज्यामर याता. यातकी सर्वत्र सुव्यवस्था थी। खेतों में जलसिंचनका उत्तम प्रबन्ध था । उन्होंने सौराष्ट्रको सुदर्शन नामक झोलके समान बहुतसो झोलें तथा नहरे बनवाई थीं। पाटलिपुत्रकी महास्तिकाओंकी शोभा संसारभरमें उत्तम यो ।
चन्द्रगुप्त ने नापने तोलने के बाट सारे देश में सुव्यवस्थित कराये थे। न्यवसायकी सगमताके लिये सोने चांदीकी मुद्रा, यातायातकी सुविधा, मंडी बाजार मादिकी सुव्यवस्था भी की थी। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापारकी उन्न. तिका भी सुप्रबन्ध किया था । जलाशय खुदवाने, खानों तथा जंगलोंकी उपजको उचित ढंगसे निकलवाने, पशुओंकी जाति ( नसल ) को उन्नत करने पर भी ध्यान दिया था। मनुष्यों तथा पशुओं की चिकित्साके लिये चिकित्सालय तथा मातुरालय बनवाये थे। चन्द्रगुप्तका विशाल हृदय अतिवृष्टि, अनावृष्टि, टिड्डी, चूहे आदि प्राकृतिक प्रकोपोंके विरुद्ध प्रबन्ध था। मनाथ बच्चों, स्त्रियों तथा दरिद्रोंका दुःख मिटाने के लिये सब समय सन्नद्ध रहता था। चन्द्रगुप्तने राष्ट्रियशिक्षाके विस्तारका विभाग अपने ही हाथों में रक्खा था। उनका शासनदण्ड अन्यायकी उत्पत्ति रोकनेके लिये सदा उद्यत रहता था। इस कामके लिये उन्होंने स्थान स्थानपर न्यायालय खोले थे जिनमें भाजके न्यायालयों ( कचहरियों ) की भांति न्याय बचा नहीं जाता था किन्तु न्याय किया जाता था। मौर्य कालमें न्यायपर बहुत बल दिया जाता था। जैसा कि आचार्य कौटल्यने अपने अर्थशास्त्र में लिखा है कि राज्यकी नींव न्याय पर ही आश्रित है । न्यायके मागे राजका पुत्र तथा शत्रु दोनों एक समान हैं।