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चन्द्रगुप्त नंद वंशका नहीं था
चन्द्रगुप्तके शासन के विषयमें पाश्चात्य ऐतिहासिकोंके लेख तथा चन्द्रगुप्तकी राजसभामें सेल्यूकसकी ओरसे दूत के रूपमें नियुक्त होकर बहुत दिन भारत में रहनेवाले मेगास्थनीजके विवरण ही प्रमाण रूपमें मिलते हैं। उन वर्णनोंके अनुसार चन्द्रगप्तका राज्य सुव्यवस्थित राज्य था और प्रजा सुखी थी। प्रजाकी सुखसमृद्धि तथा शान्ति बता रही थी कि राष्ट्रमें चन्द्र • गुप्तका व्यक्तिस्व राज्य नहीं कर रहा था किन्तु चन्द्रगप्तका माराध्य न्याय ही इस विशाल साम्राज्यको चला रहा था। उस समय भारतमें चोरी, डाके, लुण्ठन, न्यभिचार, देशद्रोह, चाटुकारिता, चुगली, ईर्ष्या, द्वेष, मिथ्या, महत्वाकांक्षा, प्रभुतालोभ नहीं था तथा मिथ्या प्रचारोंसे जनताको धोका देने तथा लोकमतका गला घोटनेके लिये पत्रकारिता तथा नेतापन नामवाली ठगीके व्यवस्था व्यवसायका तो नाम या चिह्न तक नहीं था।
चन्द्रगुप्त निश्चित समयपर न्यायालयमें उपस्थित होकर न्याय की सुरक्षा तथा अन्याय मिटाने का सन्तोष स्वयं लिया करते थे। मेगास्थनीजके वर्णनके अनुसार चन्द्रगुप्त इतने कर्तग्यलीन रहते थे कि दिन में सोते तक नहीं थे । न्यायालय में प्रतिदिन नियमसे जाकर वहाँ घण्टों बेठ. कर काम करते थे । जनसाधारण स्वयं उनके समक्ष उपस्थित होकर अपने अभियोग उपस्थित किया करते थे । प्रजाको चन्द्रगुप्तके सम्मुख उपस्थित होने के लिये किसी विचीलियेको किसी प्रकारको घुस नहीं देनी पडती थी। प्रजाका चन्द्रगुप्तसे व्यक्तिगत संपर्क होने में कोई रोकटोक नहीं थी। चन्द्र गप्तकी दिनचर्या बताती है कि दिनभर शासनके कामों में लीन रहता था। वह ब्राह्ममुहूर्तमें शयन त्यागकर सबसे प्रथम राजमहलकी देखभाल करके न्यायालयमें जाया करता था। उस समय वहां न्यायार्थी लोग उपस्थित हुमा करते थे। उनसे मिलने के लिये किसीको अनुचित प्रतीक्षा नहीं करनी पडती थी। किसी भी दर्शकके समयका अपव्यय न होनेके लिये उसकी बातपर ध्यान देकर उसे सन्तुष्ट किया जाता था ।
उसके पश्चात् वे स्नानवन्दनादि करके भोजन करते थे। मध्याह्नके समय मन्त्रियोंके शासन विभागों की देखभाल तथा उनसे परामर्श करते