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________________ राजाकी दिनचर्या ५९५ कामासक्ति, क्रोधकी अधीनता, लोभग्रस्तता, दम्भ, मद्यरुचि, औद्धत्य मादि दोष राजाके परम शत्र हैं। राजाको मृगया, जुआ, मद्यपान, कामभोग, मादि प्रलोभनोंसे पगपगपर बडी सावधानीसे अपनेको बचाये रखना चाहिये । राजा जनकल्याणके काममें त्रुटि करनेसे दण्डका भागी बन जाता है। अज्ञान और असंयम ( अर्थात् अनुभवहीनता और स्वार्थ ) ये दोनों राज्यसंस्थाको नष्ट करनेवाली व्याधि है । भारमसंयम सीखना ही राजचरित्र निर्माणकी मुख्य सामग्री है । सच्चे राजाको मानवताके महान् मादर्शका उपासक होना चाहिये । मानवता के महान लादशंका उपासक हुए विना किसीको राजा बनने का अधिकार ही प्राप्त नहीं होता। राजाको राज्य के अनुभवो वृद्ध, ज्ञानी लोगों के संपर्क में रहना चाहिये । इसलिये रहना चाहिये कि शासन की जटिल समस्याओंका समाधान करने में अनुभवी वृद्धों की बुद्धि तथा अनुभवसे लाभ उठाया जाय । राजाको सदाचारी अनुभवो वृद्धोंके अनुभवोंसे लाभ उठानेवाला शिष्य बनने के लिये इन्द्रियविजयी भी बनना चाहिये । मनुष्यको सच्चा मनुष्य बनानेवाली संपूर्ण शिक्षा इन्द्रियविजय पर ही मुख्यतया माश्रित है। राजा अपनेको योग्य राजा बनाये रखने के लिये अपने आपको अटल दिनचर्याके कठोर बन्धनमें बांधकर रक्खे । वह अपने दिन के प्रत्येक भागको कर्तव्य से भरपूर रक्खे. और बड़ी श्रद्धासे दिनचर्याका पालन किया करे । राजाकी दिनचर्या दिनरातको सोलह नलिका ( डेढ घंटा ) में बांटकर दिनके आठ भागों (बारह घंटों)को कर्तव्योंसे भरा रक्खे । राज्यके मायन्ययका निरीक्षण नागरिकों तथा उनकी सुविधाओंकी देखभाल, स्नान, मारमचिन्तन, वैदिक अनुष्ठान, भोजन, स्वाध्याय, राजस्व ग्रहण, राजकर्मचारियों के कर्तव्यों का निरी. क्षण, मंत्रियोंसे राजकार्योंकी मालोचना, गुप्तचरोंसे देशविदेशके समाचारोंका संग्रह, चित्तविनोद, हाथी, घोडे, रथ तथा पदाति सेनामोंका निरीक्षण सेनापति के साथ संग्रामसंबन्धी कार्यवाहियों की मालोचना करके दिनके मन्तमें
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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