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आर्य चाणक्यका इतिवृत्त
भारतका शौर्य, वीर्य आदि सब भ्रान्त मार्ग अपना बैठा है । भारतमें अखिल भारतीयता के नाम पर देशका संकट टालनेवाली शक्तियाँ कहीं भी काम नहीं कर रही हैं । इससे देशको राजशक्ति भी कुमार्ग पर पड गई है। भारतीय समाज देश की राजशक्तिको कुमार्गसे हटाकर सुमार्गपर रखनेके कर्तव्यको उपेक्षा कर रहा है । सम्पूर्ण समाज व्यक्तिगत स्वार्थसिद्ध करनेवाले प्रयत्नों में मग्न होकर राष्ट्रसुधारकी ओरसे उदास हो गया है। देश में शासन सुधार नामक कर्तव्य करने वाला कोई भी नहीं रह गया है। यदि देशको यह निर्बल असावधान कर्तगहीन मानानक स्थिति बनी रहने दी गई तो यह भारतीय सम्पदाको विदेशी भाकमकोंके हाथों में जानेसे रोक नहीं सकेगी। इसका अखिल भारतीय परिणाम यह होगा कि सच्ची माध्यात्मिकता, नैतिकता, शूरता, वीरता आदि गुणांकी जननी मनुष्यता भारतसे सदा के लिये लप्त हो जायगी और देशमें मासुरिकता तथा म्लेच्छता निर्विरोध भावसे फैलकर रहेगी और देश म्लेच्छोंका देश हो जायगा।
भारतका वक्षःस्थल तो रुधिरराजित तथा स्नात हो जायगा और भारतीय गगन अत्याचारिताक आर्तनादोंसे गूंज उठेगा । चाणक्य देख रहे थे कि भारतमें आनेवाली इस आसन्न विपत्तिको व्यर्थ करने के लिय भारत. वासियोंके मनोराज्य में आमूल सुमहती क्रान्ति करने की आवश्यकता है। वे भारतकी भ्रान्त माध्यात्मिकताके दुष्परिणामोंसे सुपरिचित थे । इसीसे उन्होंने अपने अर्थशास्त्रमें उत्तरदायित्वहीन होकर कपडे रंगकर नैष्कावलम्बी संन्यास लेनेका अभिनय करके समाज में कर्तव्यहीन श्रेणी बढ़ाने. वालों के लिये दण्डकी व्यवस्था की है। वे समाजमें उत्तरदायित्वहीन लोगोंकी उत्पत्ति रोककर समाज के प्रत्येक मनुष्यका समाजकल्याणसें उपयोग कर लेना चाहते थे। वे देख रहे थे कि भारतके घर घरमें आध्यात्मिकता, शूरता, वीरताकी सच्ची विधिका प्रचार किये बिना भारतकी मनुस्यताकी रक्षा नहीं हो सकेगी। देश विदेशको मानसिक स्थिति से पूर्ण परिचित चाणक्य समझ रहे थे कि यदि भारत मनुष्यत्वसे हीन हो गया तो मनु. प्यता संसार भर में से मानवके अधिकारसे बाहर चली जायगी। चाणक्य