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आर्य चाणक्यका इतिवृत्त
शक्तियों पर इतना सुहढ विश्वास रखते थे कि संसारभरके इतिहास में किसी साधनहीन मनुष्यका इस प्रकार के आत्मविश्वासका उदाहरण मिलना दुर्लभ है। बुद्धिरेव जयत्यका पुंसः सर्वार्थसाधनी । यद्वलादेव किं किं न चक्रे चाणक्यभूसुरः ॥
कौटलीय अर्थशास्त्र )
वर्धिष्णु लोग जाने कि बुद्धि ही मनुष्य के सकल वांछितको पूर्ण करनेवाली सर्वोत्तम वस्तु है । जिसके बलसे चाणक्य भूदेवने क्या क्या नहीं कर दिखाया ।
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ये याताः किमपि प्रधार्य हृदये पूर्व गता एव ते
ये तिष्ठन्ति भवन्तु तेऽपि गमने कामं प्रकामोद्यमाः । एका केवलार्थसाधनविधां सेनाशतेभ्योऽधिका नन्दोन्मूलनदृष्टवीर्यमहिमा बुद्धिस्तु मा गान्मम ॥
( मुद्राराक्षस !
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जो कुछ सोचकर पहले ही चले गये वे तो गये ही, जो यहां अब हैं वे भी चाहें तो जाने की ठाने । समस्त कार्याको सिद्ध करनेवाली मेरी केवल वह बुद्धि, जो समस्त कार्योंको सैकडों सेनाओंके समान सिद्ध कर सकती हैं नन्दोन्मूलन में जिसकी महिमा देखी जा चुकी है वह मुझे त्यागकर न जाय । फलेन परिचीयते' कार्यकर्ताकी महत्ता उसके किये कार्यों के परिणामों से जानी जाती है । जैसे चन्द्रगुप्तका साम्राज्य चन्द्रगुप्तकें अदम्य साहस, कर्तव्यतत्परता तथा उसकी योग्यताका प्रमाणपत्र है इसी प्रकार चन्द्रगुप्तका चरित्र उसके निर्माता गुरु महर्षि चाणक्यके व्यक्तित्वकी श्रेष्ठताका एक सुन्दर प्रमाणपत्र है ।
क्रिया हि वस्तुपहिता प्रसीदति ।
( भारवि )
क्रिया हि द्रव्यं विनयति नाद्रव्यम् । ( कौटलीय अर्थशास्त्र ) पात्र में किया हुआ परिश्रम ही सफल होता है । क्रिया पात्रको ही लाभ पहुंचाती है अपात्रको नहीं ।