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चाणक्यसूत्राणि
विवादमें लिप्त बताना भी निराधार होजाता है । इस कल्पनाने चाणक्य की भारतीय साम्राज्य बनाकर खडा कर देनेवाली राजनैतिक प्रतिभाका अप. मान किया है और उसे एक प्रतिहिंसापरायण व्यक्तिका रूप दे डाला है जो चाणक्यके महान् व्यक्तित्वका भारी अपमान है । पाठक देखे 'नन्दैर्वि मुक्तमनपेक्षितराजवृत्ते ।' इस मुद्राराक्षसने भी नन्दोंके उन्मूलनका कारण उनका राजोचित कर्तव्योंसे विमुख होना बताया है।
श्राद्ध भोजन के समय नन्दवंश में चाणक्य के अपमानको भी कहीं कहीं नन्दवंशोच्छेदका कारण बताया गया है। यह कल्पना भी कामन्दकके निम्न चाणक्यवृत्तके साधारसे खंडित रह जाती है--
वंशे विशालवंश्यानामृपीणामिव भूयसां ।
अप्रतिग्राहकाणां यो बभूव भुवि विश्रुतः ।। जब कि चाणक्य दान लेते ही नहीं थे तब वे किसीके घर श्राद्ध खाने जायें यह एक असंगत कल्पना है। जिसके मस्तिष्कमें इतने बड़े साम्राज्यकी सारी सामग्री भरी हुई थी और इतना बड़ा कार्यभार जिसकी प्रत्येक समय प्रतीक्षा कर रहा था, वह लोगों के घर श्राद्ध खाता फिरे यह कल्पना ही असंगत है।
जिन दिनों संसारमें कहीं भी मनुष्यताका उन्मष नहीं हो पाया था । जिन दिनों पाश्चात्य जगम्में राक्षसी प्रवृत्ति उन्मेषोन्मुख होकर मनुष्यता पर पाशविकताके प्रहार कर रही थी और भारतीय मनुष्यता भी लक्ष्यभ्रष्ट होकर पाश्चात्य आनरिकताका आह्वान कर रही थी, वह एक महान् अन्त. राष्टीय संकट था। उस समयके भारतका यह कितना बड़ा सौभाग्य था कि उस महान् जगदम्यापी संकट के समय उसे चाणक्यकी सेवायें प्राप्त हो गई थीं । चाणक्यने अपने ज्ञाननेवसे अपनी माराध्यदेवी सत्यस्वरूप मनु. प्यताको या मनुष्यताके नामपर करनेवाली शक्तियों को भारतमाताके वक्षः स्थलसे नष्ट न होने देनेवाले रामबाण उपायोंकी उद्भावना की थी। चाणक्य अपनी बुद्धि की अभ्रान्तता, सार्थकता तथा उसकी विश्वविजयी