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चाणक्यसूत्राणि
पाठक देखें इतने बडे राष्ट्रकी कल्पना तथा निर्माण दोनोंके सर्वेसर्वा बने हुए आर्य चाणक्यने अपनी इस महती राष्ट्रसेवाके बदले में राष्ट्रसे एक कौडी तक नहीं चाही। किसी कोठी (बैंक ) में कोई व्यक्तिगत धन संगृ. हीत नही किया । कोई प्रासाद ( कोठी बंगला ) नहीं बनवाया। पैन्शन नहीं बंधवाई और अन्त में तो रायके कल्पक निर्माता तथा विधाता होने के कारण अपने मंत्री बने रहने के वैध अधिकार को भी समात्य राक्षसको सौंपकर दैनिक राजकाजोंसे अपना संबन्ध तोह लिया। तपोवनं यामि विहाय मोर्य त्वां चाधिकारयधिकृत्य मुख्यम् । त्वयि स्थिते वाक्पतिवत्सुबुद्धौ भुनक्तु गामिन्द्र इवैष चन्द्रः ।।
( मुद्राराक्षस ) अब मैं मोर्यको तो सम्राट बलाकर तथा तुझे मुख्यमंत्रित्वज्ञा भार सौंपकर अपनी ब्राह्मो तपस्या के लिये तपोवन जा रहा हूँ। मेरा आशीर्वाद है कि सम्राट चन्द्रगुप्त वृहस्पति के समान तुम जैसे कुशल मंत्री के रहते हुए इन्द्र के समान वृधिनीका पालन करें ।
इसके पश्चात् चाणक्यने अपने आकिंचन ब्राह्मण जीवन ही सौभाग्य मानकर जीवन भर राष्ट्र सेवाको दृष्टि से केवल चन्द्रगुप्त तथा उसके साम्रा. ज्यका ही नहीं संसारभर के राजनीति के भावी विद्यार्थियों का भी पथप्रदर्शन करने के लिये राजनीति पर 'न भूतो न भविष्यति 'जपा शास्त्र बनाने में अपनी वह प्रबल मानसिक शक्ति लगा डाली, जिससे सिकन्दरको पराभूत करापा, गणराज्यों को एक महा साम्राज्यका रूप देकर उसे एक आदर्श राष्ट्र बनाकर दिखाया और आदर्श राज चरित्रका निर्माण किया। चाणक्य. का अर्थशास्त्र मगधविजय के शीघ्र ही पश्चात् लिखा गया और ये चाणक्य सूत्र भी उन्हीं दिनों लिखे गये ।
आर्य चाणक्यका इतिवृत्त चाणक्य तथा कौटल्य इन दो उपनामोसे अत्यधिक विख्यात इस विद्वा. नका जन्मनाम विष्णुगुप्त है । ये इन्द्रियविजयी मेधावी विद्वान् प्रभाव.