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________________ चाणक्यका मंत्रित्व त्याग पक्ष लेने के कारण सराहना की- सर्वथा स्थाने यशस्वी चाणक्यः । कुतः ? चाणक्यको मिलना सर्वथा ठीक हुमा है । क्योंकि द्रव्यं जिगीषुमधिगम्य जडात्मनोऽपि नेतुर्यशस्विनि पदे नियतं प्रतिष्ठा । अद्रव्यमेत्य तु विविक्तनयोऽपि मंत्री शीर्णश्रियः पतति कूलजवृक्षवृत्या ।। (मुद्राराक्षस १४) विजिगीषु कल्याण प्राप्तिके योग्य जयोद्योगी राजाको पाकर तो मन्दबुद्धि मन्त्री भी अवश्य प्रतिष्ठा पा जाता है। उदार बुद्धि अमात्य के प्रतिष्ठा पा जानेकी तो बात ही क्या ? परन्तु अयोग्य प्रभुका आश्रय कर लिया जानेपर तो विशुद्ध नीतिवाला मंत्री भी नदी के पतनोद्यत किनारे खडे हुए वृक्षकी भांति ( मेरे समान ) निराश्रय होकर गिर पडता है। चन्द्रगप्त तथा अमात्य राक्षसके मिलन का यह प्रभाव हा कि संकीर्ण प्रान्तीयता अखिल भारतीयताके रूप में परिणत हो गई । इस मिलनके परिणामस्वरूप प्रान्तीय भावना समाप्त हो गई और देश में अखिल भारतीयताका बीज वपन हो गया। समात्य राक्षसके मन्त्रित्वभार संभालते ही सारा मगध प्रान्तीयताका पश्चात्ताप भूल कर चन्द्रगुप्तका अनुरक्त हो गया। मगधमें अमात्य राक्षसकी लोकप्रियता चन्द्रगप्तका पक्का साथी बन गई। चाणक्यकी अन्तर्दृष्टिने भारत के स्वातन्त्र्य यज्ञमें अपने मंत्री बने रहने के न्याय्य लोभकी आहुति देकर भारतसे प्रान्तीयता मिटा डाली और उसके स्थानमें अखिल भारतीयताको जन्म दे दिया। उसने अपने इस मन्तिम राजनैतिक कर्तव्यको भी हर्ष तथा उत्साह से पूरा करके न केवल चन्द्रगुप्तकी लोकप्रियतामें चार चाँद लगा दिये, किन्तु भारतको एक विशाल राष्ट्र के रूपमें परिणत करने के अपने उद्देश्य की ब्राह्मणोचित निष्कामताके संबंध अमात्य राक्षसको नि:सन्दिग्ध भी कर डाला | इन दोनोंका मिलन चाणक्य के राजनैतिक जीवनको अन्तिम कृष्य था। अमात्य राक्षसने चाणक्यके राजनैतिक निष्काम महान् उद्देश्यसे गद्गद होकर चन्द्रगुप्त का मन्त्रिस्व ग्रहण किया और भारतसे प्रान्तीयताका रोग मिटा डाला।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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