SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 583
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५५६ বাঙ্গাল बन जाने देने के लिये जीवित छोडेगा । यदि तुमने उससे संधि बनाये रक्खी और उसकी सहायतासे मगधका सिंहासन लेना चाहा तो स्मरण रखना कि मगधका सिंहासन तो तुम्हें उल्लू बनाकर तम्हारी शक्तिसे उसके अधिकारमें चला ही जायगा। साथ ही भारत सदाके लिये उसकी लूटका क्षेत्र बन जायगा। यदि तुम मेरे सुझावपर ध्यान नहीं दोगे तो भारत भी यूनान, ईरान तथा मिस्त्रकी भ्रॉति यवनों की आसुरी लीलाका क्षेत्र बन जायगा । तुम स्वयं इतने बड़े शक्तिशाली होकर इस नीच विदेशीकी सहायतापर क्यों निर्भर होते हो ? मगधका सिंहासन तो हम ही तुम्हें अतिसुगमतासे दिलवा देंगे। हमारी प्रेरणासे तुम्हें उस चन्द्रगुप्तकी सहा. यता भी मिल जायगी जो पश्चिमोत्तर भारतीय प्रदेशों में सिकन्दर विरोधी विद्रोहोंका सफल नेतृत्व करने के कारण सीमाप्रान्तकी एक शक्तिशाली सत्ता बन चुका है । यदि तुम हमारा कहा नहीं मानोगे और तुम सिकन्दरको लेकर मगधपर आक्रमण करोगे ही, तो हम पश्चिमोत्तर भारत की समस्त शक्तियों को साथ लेकर अपनी संपूर्ण शक्ति से तुम्हारा विरोध करायेंगे। तब हमें और चन्द्रगुप्त को अपने भारतको विदेशी आक्रमणसे बचाने के नामपर तुम्हारे साथ लोहा लेना पड़ेगा।" ___ “जिस समय तुम अज्ञानवश देशके शत्रु सिकन्दरका साथ दे रहे होगे वह समय तुम्हारे लिये शुभ सिद्ध नहीं हो सकेगा। तुम इसी राजनैतिक उलझनों में उलझा लुप्त हो जामोगे ।' चाणक्यका मन्त्र काम कर गया। पंचनद नरेश पर्वतक उनके परामर्शको मान गया। वह प्रभागा मान तो गया परन्तु सीधे मागसे या सद्भावनासे नहीं माना । वह भारत-रक्षाके नामपर न मानकर मगधका सिंहासन पाने के लोभसे मान।। यदि वह निष्क. पट देशप्रेमी होता तो संभव था कि चाणक्यको उसको भारतका भावी सम्राट् बनानेके लिये विवश होना पड जाता। क्योंकि वह स्वभावसे भारतका शक्तिशाली राजा था। अब पर्वतकको चाणक्यका परामर्श मान. ने में अपनी स्वार्थसिद्धिकी निश्चित संभावना दीखने लगी और इसलिये उसने सिकन्दरकी सहायताकी कल्पना त्यागकर संधि भंग कर डाली।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy