SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 582
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रसंगोचित आलोचना उस समय मगध भारतके गणराज्योंमें सबसे अधिक शक्तिशाली राज्य था। पर्वतककी दृष्टि भारतका सम्राट बनने के लिये सबसे प्रथम मगधकी ओर गई और उसने सोचा कि यदि मुझे मगधका सिंहासन मिल जाय तो भारतके भिन्न-भिन्न खण्ड राज्यों को अपने अधिकारमें कर लेना सुगम हो जायगा । पर्वतक देशके शत्र सिकन्दरको नष्ट करनेका सुअवसर भूलकर विदेशी सहायतासे भारतका सम्राट बननेके लोभ में उलझकर सिकन्दरकी मनोवांछित संधिके द्वारा युद्ध स्थगित करके इतने बड़े विश्वविख्यात भाततायाको क्षमा कर बैठा। भारतमें सिकन्दरपर मार पडनेके जो दिन इस युद्ध के पश्चात् उपस्थित हो रहे थे इस संधिने उन्हें कुछ दिन के लिये और टाल दिया और सिकन्दर कुछ दिन पर्वतकका रक्षित दुष्ट अतिथि बन कर रहा। उसने उसके राज्य के भासपासके कुछ प्रदेश जीतकर पर्वतकके राज्य में मिला दिये और पर्वतकका विश्वासपात्र बननेका अभिनय किया। पर्वतककी विदेशियों के कर्तृत्वसे भारतका सम्राट बनने की यह दुष्ट बुद्धि भारत के सर्वनाशका कारण बनने जा रही थी कि सौभाग्य से महामति चाणक्यको उसकी इस देशद्रोही दुष्ट बुद्धि का पता चल गया । चाणक्य समझ गया कि सिकन्दर देशद्रोही पर्वतकको ठग लेना चाहता है। और पर्वतक लोभमें भाकर इस शत्रुका नाश करने में प्रमाद कर गया है । उसने काँटेसे काँटा निकालनेकी नीतिसे काम लिया और देशद्रोही पर्वतकको केवळ तात्कालिक रूपमें समझाकर इन दोनोंकी दुष्ट संधिको यह कहकर तुडवाकर छोडा कि, " तुम सिकन्दरका विश्वास करके मगधका सिंहासन कभी नहीं पा सकते । इसलिये नहीं पा सकते कि यह सन्धि तुम्हें ठगने के लिये ही की गई है। सिकन्दर तम्हें अन्त में तब ठगेगा जब तुम उसका कुछ न कर सकने की स्थिति में होगे और उसके हाथ में शक्ति जा चुकी होगी।" "जिस सिकन्दरने आजतक विश्वासघातके अतिरिक्त किसीसे कोई वर्ताव किया ही नहीं क्या वह तुमसे अपना काम निकाल लेने के पश्चात् तुम्हें सम्राट
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy