SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 580
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रसंगोचित आलोचना हो गया । फिर उसे पर्वतेश्वरकी हाथियोंकी उन सेनाओंसे लोहा लेना पडा जिनका सिकन्दरकी सेनाओंको कोई अनुभव ही नहीं था और उसे जिनकी अजेयताकी कल्पना भी नहीं थी । ५५३ पुरुराज के उद्भद योद्धा हाथियोंको सेनाने सिकन्दरकी सेना में विध्वंस मचा डाला । उसके रणबांकुरे हाथो रणक्षेत्र में सूंडोंसे शत्रुसैनिकों को पकड पकडकर अपने सशस्त्र महावतों से उनका सिर कटवा कर उन्हें कमल वनकी भाँति पैरोंसे कुचल डालते थे और यूनानी सेनाके सैनिकोंकी हड्डियों तथा कवचोंको पैरोंसे पीसकर चूर-चूर कर देते थे । जीवित सैनिकों को सूंडसे पकडकर धरती में दे मारते थे | यों पर्वतेश्वरके हाथियोंने यूनानी सेनाको प्रायः नष्टभ्रष्ट कर डाला । सिकन्दर के अधिकांश घुडसवार इस युद्ध में मारे गये। यह देखकर उसकी सेनामें आतंक छा गया और वह सिकन्दरको त्यागकर शत्रुपक्ष में आत्मसमर्पण करनेको प्रस्तुत दो गयी । अब उसके पास पर्वतेश्वर से तत्क्षण संधिप्रार्थना करनेके अतिरिक आत्मरक्षाका और कोई उपाय नहीं रहा । संसार में स्वार्थप्रेरित तथा कर्तव्यप्रेरित दो प्रकारके योद्धा होते हैं । कर्तव्यप्रेरित योद्धा अपने अन्तिम श्वासोंतक अपने लक्ष्यकी सेवा करते रहने के लिये युद्धमन रहकर अपना यश अमर कर जाते हैं । स्वार्थप्रेरित योद्धा स्वार्थीपर चोट आते ही श्वेत झण्डा दिखाकर आत्मसमर्पण कर देते हैं । यही दशा भावतायी सिकन्दरकी सेना में उपस्थित हो गई थी। निराश होकर सिकन्दरको युद्ध रोकनेकी माज्ञा देनी पडी और पर्वतेश्वर के सामने इस प्रकार विनती करनी पड़ी कि जो भारतीय राजन् ! पर्वतेश्वर ! मुझे क्षमा कर । मैं तेरा शौर्य तथा बल पहचान गया। अब विपत्ति नहीं सही जाती । मेरा हृदय पूर्ण व्यथित है । मैं नहीं चाहता कि मेरे साथ जानेवाले समस्त लोग नष्ट हों इन्हें मौत के मुँह में लानेवाला मैं हूं। अपने सैनिकोंको मुत्युमुखमें धकेलना मेरे लिये किसी भी प्रकार उपयुक्त नहीं है। आततायी के इस प्रकार सर्वतोमुखी विनाशके समय सदा नहीं आया करते । राजनैतिक सूझ बूझ रखनेवाले व्यक्ति के लिये यह एक ऐसा शुभ 1
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy