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चाणक्यसूत्राणि
था। यही उसका वैदेशिकोंसे सहायता पाने और सामरिक मार्गको सुरक्षित रखनेका एकमात्र उपाय था। उसने चन्द्रगुप्त के बारमसमर्पणको अपनी नीति की सफलता मानकर विश्वास करके भारत के प्रवेशमार्ग पर बने हुए महत्वपूर्ण मारनस नामक दुर्गका अधिपति बना दिया । चन्द्रगुप्त पूर्वनिश्चित कार्यक्रम के अनुसार इस महत्वपूर्ण स्थानको पाकर अपने सिकन्दर विरोधी उद्देश्य की पूर्तिमें लग गया। इस मध्यमें पश्चिमोत्तर प्रान्त सिकंदरके अत्याचारों से पूर्ण रूपमें क्षुब्ध हो चुका था और वह किसी सुयोग्य नेताके नेतृत्व में पिकन्दरका अदम्य विरोध करनेके लिये उतावला हो रहा था। जब पश्चिमोत्तर भारतीय प्रदेशके आदि क्षत्रिय तथा वाह्मण? लोग मिलकर सिकन्दर के पाशविक अत्याचारों के प्रतिशोधके लिये उठ खड़े हुए। तब परिस्थितिने चन्द्रगुप्तको सिन्दरके विद्रोहियों का नेतृत्व करने के लिये विवश कर डाला। जब मिन्दरको चन्द्रगुप्त की इस राजनैतिक गतिविधिका पता चला तब उसने उसका वध करनेकी आज्ञा दी। इस समा. चारको पाकर चन्द्रगुप्त खुल्लमखुल्ला विद्रोहियोंका सहायक और नेता बन बैठा।
देशद्रोही तक्षशीला--नरेश अभी अपने पडौसी शक्तिशाली शत्रु पंचनन्द नरेश पुरुराज ( पर्वतक) को विनष्ट करने के लिये सिकन्दर से जा मिला । इन दोनों ने मिलकर आलमारके प्रदेश जीतो प्रारंभ कर डाले। सिकन्दर पशिमोत्तर भारतकी छोटी-छोटी सफलताओसे बहककर अपने साम्राज्य विस्तार के कार्यक्रम के अन्तर्गत पर्वतेश्वर पुरुराजको विजय करने की कार्यक्रम बना बैठा और उसे अभिसार नरेश भादि दूसरे राजाओं से संग. ठित होकर बलशाली बनने का अवसर न पाने देने के लिये शीघ्रताले झेलम के तटपर उसके सम्मुख आ डट! | इन दोनों की शीघ्रतासे पर्वतेश्वर अकेला रह गया । परन्तु वह अकेला रह जाने पर भी शक्तिशाली राजा था। उसकी सेना सुव्यवस्थित थी । सिकन्दर आक्रमण तो कर बैठा परन्तु इस युद्ध के प्रारंभिक दिनोंसे ही उसे लेने के देने पड़ने की समस्या उपस्थित दीखने लगी। यहांतक कि प्रथम तो उसे झेलम पार करना ही अत्यन्त कष्टसाध्य