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चाणक्यसूत्राणि
ईश्वरका अवतार कहने लग गया था। उसे योरोपका हिरणाकुश कहना चाहिये । वह अपना विरोध करनेवालोंकी हत्या कर देता था और अपने अवतापनेको निष्कंटक करनेकी नीतिसे काम लेता था । जो उसके अव. तारपनेका समर्थन नहीं करता था वही उसका वध्य बन जाता था। उसकी इन माततायी प्रवृत्तियों के कारण संसार उससे ठन के लगा था।
संसारके संत्रासक सिकन्दरको भारतसे निकाल कर भारत को उसके दुष्ट मारसे मुक्ति दिलाने में जिन भारतीय देशभक्तोंकी प्रतिभा तथा रणकौशलने पूरा सहयोग दिया था । आर्य चाणक्य भारतके उन सब देशसेवकोंके सुयोग्य नेता थे । कामन्दकीय नीतिशास्त्रमें चाणक्य के व्यक्तित्वके संबन्धमें निम्न प्रामाणिक विवरण विद्यमान हैं- इससे चाणक्य संबन्धी बहुतसी निराधार किंवदन्तियोंका अपने भाप संशोधन हो जाता है ।
वंशे विशालवंश्यानां ऋषीणामिव भूयसां। अप्रतिग्राहकाणां यो बभूव भूवि विश्रुतः ॥ २ ॥ जातवेदा इवार्चिष्मान् वेदान् वेदविदां वरः । योऽधीतवान् सुचतुरः चतुरोऽप्येक वेदवत् ॥ ३ ॥ यस्याभिचारवज्रेण वज्रज्वलनतेजसः ।। पपातामूलतः श्रीमान् सुपर्वा नन्दपर्वतः ॥४॥ एकाकी मन्त्रशक्त्या यः शक्त्या शक्तिधरोपमः । आजहार नृचन्द्राय चन्द्रगुप्ताय मेदिनीम् ॥ ५ ॥ नीतिशास्त्रामृतं धीमान् अर्थशास्त्रमहोदधेः । समुहले नमस्तस्मै विष्णुगुप्ताय वेधसे ॥६॥ " मैं वेधा अर्थात् समाज निर्माता जगद्वरेण्य उस विष्णुगुप्तको प्रणाम करता हूं जो उस प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवारमें उत्पन्न हुमा था जिसके सदस्य ऋषितुल्य थे, दान दक्षिणा नहीं लेते थे और समाजमें सम्मानका सर्वोच्च स्थान पाये हुए थे। विष्णुगुप्त होमाग्निके समान ज्योतिर्मय वेदान्तके मादर्शको अपनानेवालोंमें अग्रगण्य और प्रतिभासे चारों वेदोंपर एक जैसा