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चाणक्यसूत्राणि
सिकन्दरका भारतपर पाक्रमण देवकी भचिन्त्य इच्छासे भारतमें जिस आर्य साम्राज्यका जन्मदाता बन गया था जो साम्राज्य तीसरी पीढीमें बौद्ध साम्राज्य के रूपमें परिणत होकर कुछ दिन पश्चात् छिन्न भिन्न हो गया था उस विशाल साम्राज्य के सुयोग्य सम्राट तो चन्द्रगुप्त मौर्य के तथा उस साम्राज्य तथा सम्राट दोनोंके निर्माता स्वनामधन्य महामति महर्षि चाणक्य थे जो दोनों ही पश्चिमोत्तर भारतके निवासी थे। चाणक्य चन्द्रगुप्त दोनों पश्चिमो. तर भारतके निवासी होनेसे देशपर विदेशी माक्रमणकी हानियां प्रत्यक्ष देखी और अनुभव की। अपनी देशसेवाके इन दोनोंने इस अनुभवके भाधारपर मापसमें यह मन्तव्य स्थिर किया कि एक सपके रूपमें सुसंगठित भारत ही सफलतासे विदेशी आक्रमण रोक सकता है। विदेशी आक्रमणका पंजाबके गगराज्योंपर जो प्रतिकारात्मक मनोवैज्ञानिक प्रभाव पडा वही प्रभाव मागे चलकर चन्द्रगप्तके संयुक्त भारतीय सिंहासनका सम्राट बननेका आधार बना । पंजाबकी ब्राह्मण जातियों में जो यवनोंके विरुद्ध विद्रोह हुमा उसका पूरक नेता चाणक्य ही था। चाणक्य चन्द्रगुप्त दोनोंकी ब्राह्मण क्षात्र शक्तियोंने भमिन्न हृदयसे मिलकर केवल चौबीस वर्ष में अपना अखण्ड भारतीय साम्राज्यका स्वप्न पूरा करके छोडा।।
ऋषि चाणक्य सम्राट चन्द्रगुप्तके तक्षशिला विश्वविद्यालयसे गरु थे । उस समयकी पैदेशिक विपत्तिने इन दोनों संवेदनशील देशप्रेमी वीरों के मनोंमें राष्ट्ररक्षाका प्रश्न उत्पन्न किया था और इन्हें उस माक्रमणका प्रति. रोध करनेके लिये प्रस्तुत कर दिया था । आर्य चाणक्य समय समय पर साम्राज्य-निर्माणरत चन्द्रगुप्तको भादर्श राज-चरित्र-निर्माणके जो जो पाठ सिखाया करते थे उन्हें उन्होंने उसके तथा भारतके भावी राजाओंके स्वाध्यायके लिये कौटल्य ( कौटिल्य नहीं) अर्थशास्त्र के नामसे छः सहस्त्र श्लोक परिमाण ग्रन्थमें लिपिबद्ध किया था। यह बात उन्होंने अपने ही श्री मुखसे अर्थशास्त्र के अन्तमें कही है
सर्वशास्त्राण्यनुक्रम्य प्रयोगमुपलभ्य च। कौटल्येन नरेन्द्रार्थे शासनस्य विधिः कृतः॥
(कौटलीय अर्थशास्त्र २।१०।२८)