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चाणक्यसूत्राणि
अधीन होनेके कारण वे मनुष्यके अधिकारसे बाहर अध्रुव हैं, साधनों के अधीन हैं और अनित्य हैं । कर्तब्यकी प्रेरक शुभभावना ही मनुष्य के अधिः कारमें रहनेवाला ध्रुव सुख तथा शान्ति है।
(सारा ही संसार मृत्युका ग्रास)
सर्वमनित्यं भवति ॥५६६॥ सम्पूर्ण भौतिक सुख तथा उसके समस्त साधन अनित्य है। विवरण- ज्ञानवान् मानवको अपने अदेहरूप या स्वानुभूत ब्रह्मान. न्दके अतिरिक्त जगत के समस्त भोग्य पदार्थ भनित्य और अध्रुव दीखने लगते तथा निस्तेज और मनाकर्षक बन जाते हैं। उसकी दृष्टिपर सत्यनाराय. णका एकाधिकार हो जाता है। फिर उसे सत्यनारायणके अतिरिक्त कुछ भी आकर्षक दीखना बन्द हो जाता है । वह अपने स्वरूपमें अवस्थानरूपी ध्रुवशान्तिको त्यागकर अध्रुव भौतिक सुखों के पीछे धावन वहीं करता। पाठान्तर- सर्वमनित्यम् । पाठान्तर- सर्वमनित्यमध्रुवम् । सम्पूर्ण भौतिक सुख अनित्य तथा भध्रुव हैं ।
( अधिक सूत्र ) स्वदेहे देहिना मतिमहती । यह अर्थहीन पाठ है।
(देहासक्ति मानवका अज्ञान ) ( अधिक सूत्र ) स्वदेहे देहिनां मतिमहती। देहधारियोंको निजदेहमें बडी आसक्ति होती है। विवरण- देहासक्त मनुष्य दैहिक सुखको ही जीवनका लक्ष्य बना लेता है। मनुष्य यह जाने कि दैहिक-सुख-साधन-संग्रह करना जीवनकेलिये उपयोगी होनेपर भी जीवनका लक्ष्य नहीं है। इसलिये नहीं हैं कि यदि दैहिक-सुख-साधन-संग्रह करनामात्र जीवनका लक्ष्य हो, तो बता.