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मन्त्रीकी योग्यता
है- ' प्रच्छन्नोऽवमतो वा मन्त्रं भिनत्ति ।' या तो शत्रु गुप्त रहकर मन्त्र को लेउडता है या कोई भेद जाननेवाला राजकर्मचारी किसी अपराधपर निर्भसित दण्डित या कार्यबहिष्कृत कर देयेजानेपर द्वेषाधीन होकर मन्त्रको शत्रुओं को देदेता है । जैसे योगी लोग समस्त इन्द्रियद्वारोंको रोककर निरुपद्रव होकर योगानुष्ठान करते हैं, इसी प्रकार मन्त्रणा करनेवाले राजा या राज्याधिकारी लोग मन्त्रसंगोपन में अपनी संपूर्ण बुद्धि और सतर्कता व्यय कर डालें ।
तस्मान्नास्य परे विद्यः कर्म किंचिश्चिकीर्षितम् । आरब्धारस्तु जानीयुः आरब्धं कृतमेव वा ॥
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कौटलीय अर्थशास्त्र.
राष्ट्र के किसी भी चिकीर्षित कामको उसकी चिकीर्षित अवस्थातक कोई भी दूसरा व्यक्ति न जानने पाये । आरम्भ करनेवाले लोग भी उसे केवल तब जानें जब वह काम प्रारम्भ कर दिया जाये । शेष लोगों को तो वह काम पूरा किया जा चुकनेपर ही पता चलना चाहिये ।
मन्त्रसम्पदा हि राज्यं वर्धते ॥ २७ ॥
मन्त्रकी पूर्ण सुरक्षा तथा उसकी पूर्णाङ्गता अर्थात् निर्दोषतासे ही राज्यश्री की वृद्धि होती है
विवरण - राष्ट्र या राजकाज ? मन्त्रनैपुण्यरूपी सिद्धि या मन्त्रप्रणिधानरूपी कौशल से ही वृद्धि पाता है । इसीसे अर्थशास्त्रमें कहा है' तस्मान्मन्त्रोद्देशमनायुक्तो न गच्छेत् ।' कोई भी अनधिकारी असंबद्ध मनुष्य मन्त्रस्थान या उसके आसपासतक न जाने पावे । यह भी कहा है
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नास्य गुह्यं परे विद्यः छिद्रं विद्यात्परस्य च । गूहत् कर्म इवाङ्गानि यत्स्याहिवृतमात्मनः ॥
कौटलीय अर्थशास्त्र.
कोई भी बाहरवाला विजोगीपुके रहस्यको न जानने पावे और वह अपने दूतों के द्वारा शत्रुके रहस्य वा निर्बलताको जाना करे। ऐसा करनेसे अपना