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चाणक्यसूत्राणि
मनुष्य अपनी तुच्छातितुच्छ निर्बलताको भी प्रकट न होने दे अर्थात उसे व्यवहारभूमि प्राप्त न होने दे। ___ मनुष्य अपने मनमें उत्पन्न होनेवाली लघसे लघु निर्बलताको भी व्याव. हारिक रूप न लेने दे । स्पष्ट शब्दों में मनुष्य अपने मनको इतना संयमी और दृढ बनाकर रखे कि उसमें चित्त-चांचल्यजनित दुर्बलताको किसी भी प्रकार स्थान न मिलने पाये। मार्यचाणक्यका भूम्र यह लघुताभरी निर्बल बात नहीं कहना चाहता कि मनुष्य दुर्वलताको शत्रकी दृष्टि से छिपा. कर दुर्बल बना रहे । प्रत्युत यह कहना चाहता है कि मनुष्य किसी भी प्रकार की दुबलताको जीवन में कार्यकारी तथा समाजमें मंक्रामित न होने दे। दृढनित्तता ही वीरका स्वभाव होना चाहिये । पहले तो दुल भीरु बनकर रहना और फिर उस दुर्बलता या भीरुताको छिपाये रखना कोई अर्थ नहीं रखता। यह सुत्र अनिवार्य भौतिक निबलताओंके सम्बन्धमें कहना चाहता है कि वीरका कर्तव्य है कि वह अपनी भौतिक न्यूनताको असमर्थता न माने और शत्रुके तथा जगत् के सामने धीरज न छोड बैठे। विजिगीषु मनुष्य इस सत्य सिद्धान्तको कभी नहीं भूलता कि वीरकी दृष्टि में भौतिक सामथ्र्य की न्यूनता असमर्थता नहीं होती । मनुष्य को जानना चाहिये कि लोग भौतिक सामथ्र्यसे विश्वविजयी नहीं बना करते । भौतिक सामर्थ्य का न्यूनाधिक होना अवश्यंभावी होता है । वीरके पास यहच्छासे जो या जितना भौतिक सामर्थ्य होता है वह उतना ही वीरको वीरताके महान् नेतृत्वमें भाकर शत्रुविजयका ब्रह्मास्त्र बन जाता है और उसकी अनिवार्य मृत्यु भा खडी होने पर भी उसे विश्वविजेता बना देता है।
( सहनशीलताकी प्रशंसा ) ( अधिक सूत्र ) शक्ती क्षमा श्लाघनीया । निग्रह अनुग्रहका सामर्थ्य रहने पर भी सहनशीलता प्रशंसा योग्य प्रवृत्ति है। विवरण- यहाँपर क्षमाका अर्थ अप्रतिकार नहीं है। अप्रतिकारको