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जारीका सर्वश्रेष्ठ देव
पाठान्तर--न चासनमपि पश्यत्यैश्वर्यतिमिरचक्षः न शृणोतीष्टं वाक्यम् । ऐश्वर्यरूपी तिमिर रोगका रोगी राज्याधिकारी शेष अर्थ समान है।
( नारीका सर्वश्रेष्ठ देव) स्त्रीणां न भर्तुः परं देवतम् ॥५१२॥ आर्यनारियोंका पतिसे अधिक पूजनीय और सेव्य कोई नहीं है।
विवरण- सत्य ही मनुष्यमात्रका पति या प्रभ है। पतिव्रता नारीके लिए अपने सत्यनिष्ठ सुयोग्य पतिकी सेवा सत्यकी ही सेवा है। मूर्तिमान सत्य स्वरूप पति की अवज्ञा करनेवाली बनना और उसकी सेवामें त्रुटि करना नारीकी कलुषित मनोवृत्तिका परिचायक है । सत्यस्वरूप पति के सेवाधर्मसे च्युत होनेवाली नारी परिवार तथा समाजकी सेवाको भी त्याग देती है । सत्यस्वरूप पति-सेवा स्त्रीके समस्त सामाजिक कर्तव्योकी प्रतीक है । सत्यम्वरूप पतिकी सेवा त्यागनेवाली स्त्री अधर्म के प्रभावमें आकर अपना, परिवारका तथा समाजका, सबका ही अहित करने लगती है।
पतिव्रता नारी भाई-बहन, चाचा-ताऊ, श्वशुर मादि तथा घरके सेवकों तककी श्रद्धासे सेवा करती भोर किसीको आक्षेपका अवसर नहीं देती। स्नेह, प्रेम, मात्मत्याग, सेवा और लावण्य स्त्रियों का विशेष स्वभाव होता है । स्त्रियों को अपने इन सब गुणों की रक्षाके लिये जिस समाजके सहयोगकी श्रावश्यकता होती है, उस समाज ने उनके इन गुणों की रक्षा के लिये दाम्पत्य नामक समाजबन्धनमें रहने तथा इस बन्धनको दृढतासे स्थिर रखने में ही उनका कल्याण नियत किया है और इसे 'ममाज -व्यवस्था का नाम दिया है। यदि वे इस समाज-बन्धनकी उपेक्षा करें तो उनका अस्तित्व निराश्रित हो कर अरक्षित होनाय । दाम्पत्य नामक धर्म-बन्धनके उपेक्षित होने पर स्त्रियों को समाज में सुख-शान्ति से जीवन-यापनकी संभावनायें नष्ट हो जाती
३० (चाणक्य.