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भोगमें जीवन नष्ट कर रहा है
माशाकी सैकडों रस्सियोंसे बंधे हुए, काम-क्रोधमें ही अपना जीवननामक महत्वपूर्ण सुअवसर मिटा डालनेवाले लोग काममोगके लिये अन्यायसे धनोपार्जनकी चेष्टा करते हैं । बताइये जिस देश में इस प्रकारकी प्रवृ. त्तिके लोग अधिक हो जायेंगे वह देश रसातलको न जायगा या अशान्तियों, कलहों और दुःखोंका घर न बन जायगा तो क्या होगा ? सुखी तो वे देश होंगे जहां के लोगोंका कर्तब्यसे ही महत्वपूर्ण सम्बन्ध होता है और फल उपेक्षापक्षमें पड़ा रहता है । मनुष्य जाने कि 'नैराश्यं परमं सुखम् ' निराशा ही ( सुखेच्छारूपी दुःखका संसारका सर्वोत्तम रहना ही ) सुख है। कर्तव्य करने का ही मानवको अधिकार है, कर्तव्य बहिर्भूत वंध्या फलाशाका नहीं।
आशानाम नदी मनोरथजला तृष्णातरंगाकुला। रागग्राहवती वितर्कविहगा धैर्यद्रमध्वंसिनी । मोहावर्तसुदुस्तरातिगहना प्रोत्तुंगचितातटी । तस्याः पारगता विशुद्धमनसो नन्दन्ति योगीश्वराः ॥ माशा संसारके यात्री मनुष्यको डुबानेवाली नदी है, मनोरथ उसके जल हैं, तृष्णा उसकी तरंग है, राग उसमें रहने वाला मगरमच्छ है, वितर्क नामके पंछी इसके किनारोंपर बैठे रहते हैं । यह माशा नदी धैर्यरूपी दमको जडसे उखाड़ फेंकती है। मोहात्मक भवरोंसे दुम्तरणीय लम्बी चौडी चिन्तायें इस नदीको द्वितट भूमि है । इस नदीको पार करना विचारशील मनवाले कर्मयोगियोंका काम है । यदि मनुष्य सुखी जीवन व्यतीत करना चाहे तो उसे माशाके बन्धनमें न रहकर कर्तव्य के कठोर निष्काम बन्धनमें रहना ही होगा।
पाठान्तर ---- इतःपरमधीतः परं कुशलो भविष्यतीत्याशया लोको जीवति।
इसके पश्चात् विद्वान् बनकर सुस्त्री जीवन बितायेंगे इस भाशासे संसार जीता है।