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मन्त्रीकी नियुक्ति
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( मन्त्रीकी नियुक्ति )
पाठान्तर - मानी प्रतिपत्तिमानात्मद्वितीयं मन्त्रिणमुत्पादयेत् ॥ स्वयं अपनी सूझबूझ रखनेवाला मानी ( समुन्नतचेता सम्मानार्ह विचारशील स्वाभिमानी यशस्वी ) राजा अपना दूसरा योग्य साथी बनाने के लिये सचिवलक्षणोंसे युक्त अपने अनुकूल किसी सद्गुणी स्वराष्ट्रवासी व्यक्तिको प्रधानमन्त्री के रूपमें नियुक्त करे ।
विवरण - यशस्वी, प्राज्ञ, समृद्ध, उत्साही, प्रभाव संपन्न, कष्टसहिष्णु, कठोरकर्मा, शुचि, मिष्टव्यवहारी तथा राजसंस्थाके साथ सुदृढ अनुराग रखनेवाला स्वराष्ट्रवासी व्यक्ति मंत्री होना चाहिये । यह कौटलीय अर्थशास्त्रमें वर्णित है । मन्त्रियों के लक्षणों के विषय में मत्स्यपुराणसें लिखा है- कि मन्त्री भक्त, शुचि, शूर, आज्ञानुवर्ती, बुद्धिमान्, क्षमी, कार्याकार्यविवेकी, तर्कशास्त्र, वार्ताशास्त्र, त्रयी तथा दण्डनीति आदिका विद्वान् सुदेशज और स्वदेशज होना चाहिये ।
राजाको चाहिये कि मुख्य मन्त्रीके अतिरिक्त अन्य मंत्रियों से मंत्रणा करने के प्रसंगपर उन्हें कल्पित घटनायें बता बता कर उनपर इस प्रकार सम्मति लिया करे कि ऐसा हो तो क्या करना चाहिये ? मंत्रके विषय में मुख्य मंत्रीके अतिरिक्त किसीका भी विश्वास करना और किसीको भी मन्त्र बता देना कल्याणकारी नहीं है । इसलिये मन्त्रणाके विषय में केवल इस एक सुपरीक्षित व्यवहारकुशल उपधाशुद्ध प्रधानमन्त्री के साथ मालोचना करके ही किसी विषयका अन्तिम निर्णय करे और यह प्रधानमन्त्री उस निर्णयको गुप्त रखनेका पूर्ण उत्तरदायी हो। इससे निश्चय करना इसलिये आवश्यक है कि राजकीय निर्णयों में दूसरे विज्ञपुरुषकी बुद्धियोंका सहयोग अपेक्षित होता है । इसलिये राजा लोग स्वनिश्चित बातको भी अपने प्रधानमन्त्री से पुनर्निश्चय करायें । उस कर्तव्य के विषयकी सविस्तर आलोचना के लिये प्रधानमन्त्री अपने विभागों के बहुत से विशेषज्ञोंके साथ मंत्रणा करके कर्तव्यका