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विनाशोन्मुखका चिन्ह
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ब्राह्म मुहूर्ते बुध्येत धर्मार्थों चानुचिन्तयेत् ।
कायालेशांश्च तन्मूलान् वेदतत्वार्थमेव च ॥ कल्याणार्थी मानव सूरज निकलनेसे लगभग एक घंटा पहले नींद त्यागा कर जाग उठा करें और उस समय स्वस्थ मनसे सबसे पहले अपने मानसिक उत्थानके लिये किये जानेवाले आजके सामाजिक कर्तव्योंका स्वरूप निर्धारित किया करे तथा उनकी उपायादि चिन्ता करे। फिर अपनी व्यक्तिगत जीवन-यात्राके संबन्ध दिनमें करणीय कर्तव्यपर दृष्टि डाले । उसके पश्चात् शरीरको रोग-मुक्त स्वस्थ रखने तथा रोगजनक कारणोंके संबन्धमें सोचे । इतना कर लेनेके पश्चात् कुछ कालतक वैदिक ज्ञानके सर्वस्व मारमाके स्वरूपपर प्रतिदिन गंभीर विचार करे कि मैं कौन हूँ? दूसरे कौन हैं ? उनसे क्या सम्बन्ध है ? इत्यादि। __ अथवा-निशान्त शब्द एकान्त शान्त स्थान तथा राधिके अन्तकका भी वाचक है। तथा सूत्रार्थ यह है कि राजा लोग एकान्तमें शान्त स्थानपर जहाँ कोई अनधिकारी मन्त्रणाको सुन न सके मन्त्रणा करें। अथवा वे भी रात्रिके अन्त में ही मनके स्वाभाविक रूपसे स्थिर होनेपर अपने विचार. णीय विषयपर गंभीरतासे सोचें । कामकी अधिकतासे मनके चंचल होजाने. पर दूसरे किसी समय कार्य-नीति-निर्धारण या मन्त्रणाके कामका उतना अच्छा होना संभव नहीं। प्रदोषे न संयोगः कर्तव्यः ॥ ४९१ ॥
(विनाशोन्मुखका चिन्ह) उपस्थितविनाशो दुर्नयं मन्यते ।। ४९२ ॥ जिसका विनाश उपस्थित होता है (जिसके बुरे दिन आते हैं ) घही अनीतिको अपनाता है।
विवरण- विनाशोन्मुखकी बुद्धि नष्ट होजाती है । अनीति या दुष्ट नीति स्वयं ही विनाश है । मनुष्य समुपस्थित साधनोंकी नीतिपूर्ण रक्षा