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चाणक्यसूत्राणि
संसार में नेता या गुरुनामधारी लोग अनुयायियों को अपने व्यक्तित्व के पीछे चलते आ रहे हैं । सूत्रकारको समाजकी यह स्थिति सह्य नहीं है । वे इस सूत्र में बहुमत के विरुद्ध एकके पीछे न चलने के सम्बन्ध में सावधान वाणी कहकर स्पष्ट कह रहे हैं कि समग्र मनुष्यसमाज के कल्याणका विरोध करनेवाले किसी भी मतवादी नेता या गुरुके पीछे मत चलो; किन्तु जिस सत्य के पीछे चलने से समग्र मानवसमाजका कल्याण होता हो, होता भारहा हो या होनेकी पूर्ण संभावना हो उस सत्यका स्वयं दर्शन करें और उसीके पीछे चले | इस रीति सत्यके पीछे चलते हुए तुम्हें कोई एक मनुष्य साथीके रूपमें मिल जाय या तुम्हें किसी एकके साथ चलना पडे तो तुम्हारे मनमें इस अतिका सन्तोष अटल रहना चाहिये कि मैंने किसी व्यक्तिके पीछे न चलकर सत्य के पीछे चलकर सत्यकी सेवा की है। यह सूत्र मनुव्यकी व्यक्त्यनुगामिता छुड़ाकर उसे सत्यानुगामी बनाना चाहता है । मनुष्यको बहुमतानुगामी बनाना तो इस सूत्रका उद्देश्य कदापि नहीं है
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इस सत्र में बहुमत के अंधानुगमनका उपदेश नहीं दिया है। किन्त एकके अन्धानुगमनका निषेध करके किसी के व्यक्तित्व के पीछे चलनेका ही निषेध किया है | मनुष्यको सत्यको अपनाने और उसीक पीछे चलने का संतोष पाना चाहिये किसीके अनुगमनका नहीं । बात यह है कि एक या बहुत दोनोंसे अप्रभावित रहकर केवल सत्यका अनुगमन करने से हो कर्तव्यपालनका संतोष होता है, अन्यथा नहीं । यदि सूत्रका यह अभिप्राय होता तो इसे स्पष्ट शब्दों में यों कहना चाहिये था -
" बहुमतविरुद्धमेकं त्यक्त्वा बहुमतमनुवर्तेत । "
अर्थात् बहुमतविरोधी एकको त्यागकर बहुमतका हो अनुसरण करना चाहिये ।
कुछ टीकाकार इस सूत्रका बहुजनविरोधी एकका साथ छोडकर बहुमत के साथ देना अर्थ करना चाहते हैं । वे चाहे ऐसा समझें परन्तु सूत्र अपने मुखसे यह बात कहना नहीं चाहता । उसने तो सम्पूर्ण समाजको