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________________ चाणक्यसूत्राणि विरुद्ध रोप उत्पन्न होजाना समस्त अनर्थोंसे भयंकर है । प्रजावर्गकी शुभेच्छा और स्वीकृति दी राज्यसंस्थाका मूल है । जनमतमें राज्यसंस्था के संबन्धमें क्षोभ या रोष उत्पन्न होजाना, राज्यसंस्थाके लिये महा अनिष्टकारी है । जब प्रजावर्ग राज्यके दुष्प्रबन्ध तथा दुष्ट राजकर्मचारी रूपी भेडियों के उत्पीडनों से त्रस्त होकर, कानूनको हाथमें ले लेनेके लिये विवश कर दिया जाता है तब राज्यसंस्थानोंके नष्ट होनेमें एक क्षण भी नहीं लगता । एक बलवान नारा लगनेकी देर होती है कि राज्यसंस्था धूल में मिल जाती है । इसलिये राज्याधिकारी लोग जनतामें अपनी राज्यसंस्था के प्रति क्षोभ पैदा करनेवाले कामोंसे बचें, प्रजा दुःशासन, अन्याय, उत्पीडन, दुर्भिक्ष, भूकम्प, महामारी, जलप्रलय, कुशिक्षा, भ्रष्टाचार, उत्कोच आदि कष्टों से कुपित हो जाती, राज्यसंस्थासे द्वेष मानने लगती, और अन्तमें द्रोह करनेपर उतर आती है । प्रजाका राज्य के प्रति रोष महामारियों तथा वैदेशिक आक्रमणोंसे भी अधिक विनाशक होता है । इसलिये प्रजाको शान्त तथा राज्यसंस्थाका प्रेमी बनाकर रखना राज्याधिकार संभाल कर बैठनेवालोंका सबसे पहला काम है । राज्यसंस्थाका जीवन और स्थिरता प्रजांकी मानसिक सन्तुष्टिपर ही निर्भर होता है । प्रजाके असन्तुष्ट रहनेपर अचिर भविष्य में राज्यसंस्थाकी हानि तथा राष्ट्रकी दुर्गति अनिवार्य हो जाती है । १४ अणुरप्युपहन्ति विग्रहः प्रभुमन्तः प्रकृतिप्रकोपजः । अखिलं हि हिनस्ति भूधरं तरुशाखान्तनिघर्षजीऽनलः ॥ ( भारवि ) जैसे वृक्ष की शाखा के अग्रभाग के संघर्षण से उत्पन्न अभि अकेले उसी वृक्षको नहीं किन्तु उस समस्त पर्वतको तथा उस समस्त वनको फूंक डालता है, जिसमें वह वृक्ष खडा होता है, इसी प्रकार राज्य के किसी भी क्षुद्र से क्षुद्र व्यक्ति न्यायसंगत रोष से उत्पन्न छोटासा भी विग्रह समग्र प्रभुसत्ताको धूल में मिला डालनेवाला बन जाता है । इसलिये राज्याधिकारी लोग प्रजाके रोषको
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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