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राष्ट्रका महालाभ
होकर या तो स्वयं ही राजशक्ति बनकर रहे या राजशक्तिका सुदृढ नेतृत्व करे, यही राष्ट्रकी शान्तिको सुरक्षित रखनेका एकमात्र उपाय है। देशके लोकमतके इस आदर्शको अपनाले नेपर ही राज्यव्यवस्थाको अयोग्य हाथों में जानेसे रोका जा सकता तथा शक्तिशाली स्वतन्त्र राष्ट्र का निर्माण किया जा सकता है । वृद्ध कह गये हैं
राजानं प्रथम विन्द्यात्ततो भार्या ततो धनम् ।
राजन्यसति लोकेऽस्मिन् कुतो भार्या कुतो धनम् ॥ सुखी जीवन बितानेके इच्छुक लोग सबसे पहले अपने देशमें न्यायकी संरक्षक, सुपुष्ट, अनभिभवनीय, अदम्य, अप्रकम्प्य, अदृष्य राजशक्ति खडी करें । इसी में उनके कल्याणका रहस्य छिपा है। उससे पहले पत्नी और धनधान्यका संग्रह करनेका कोई अर्थ नहीं है । ये तो सुपुष्ट सुविश्वस्त राज. शक्ति बनाचुकने के पश्चात् संग्रह करनेकी वस्तु हैं। सुविश्वस्त राजशक्तिके बिना भार्या और धन भरक्षित हो जाते हैं। राजशक्तिकी निर्बलतासे अपना सर्वस्व लुटवा कर नष्ट हुआ पंजाब तथा बंगाल इस वृद्ध प्रतिपादित सिद्धान्तके दुःखद उदाहरण है। पंजाब बंगालवाले उदाहरणोंसे हमारे राष्ट्र के लोगोंको शिक्षा लेनी चाहिये और अपनी राजशक्तिको पवित्र और पुष्ट बनाये रखनेमें अबतकवाली उदासीनता न बरतनी चाहिये । यह जान लेना चाहिये कि राजशक्ति हमारी ही प्रतिनिधि संस्था है। उसका सुधार हमारा ही आत्मसुधार है । यदि हम लोग अपनी राजशक्तिको इसी प्रकार उत्तर. दायित्वहीन ढोली-ढाली बनी रहने देंगे तो इस प्रकारकी दुर्घटनाओं की पुनरावृत्ति होना केवल संभव ही नहीं प्रत्युत अनिवार्य है। इस मूत्र के अनुसार " सूत्रका पाठान्तर उचित है।
प्रकृतिकोपः सर्वकोपेभ्यो गरीयान् ।। १३॥ राज्यके विरुद्ध जनरोष समस्त रोषोंसे भयंकर होता है। विवरण- मान्त्रियों, राजकर्मचारियों या कर देनेवाली प्रजाओं में राज्य के